________________ 734] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र अवधिज्ञानी परमावधिज्ञानी और केवली द्वारा परमाणु से लेकर अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक को जानने-देखने के सामर्थ्य का निरूपण ___ 20. पाहोहिए णं भंते ! मणुस्से परमाणुपोग्गलं० ? जहा छउमत्थे एवं आहोहिए वि जाव प्रणंतपएसियं। [20 प्र.] भगवन् ! क्या प्राधोऽवधिक (अवधिज्ञानो) मनुष्य, परमाणुपुद्गल को जानता देखता है ? इत्यादि प्रश्न / [20 उ.] जिस प्रकार छद्मस्थ मनुष्य के विषय में कयन किया है, उसी प्रकार आधोऽवधिक मनुष्य के विषय में समझना चाहिए / इसो प्रकार यावत् अनन्तप्रदेशो स्कन्ध तक कहना चाहिए / 21. [1] परमाहोहिए गं भंते ! मगूसे परमाणुपोग्गलं जं समयं जागइ तं समयं पासति, जं समयं पासति तं समयं जागति ? णो तिणढे समझें / [21/1 प्र. भगवन् ! क्या परमावधिजानो मनुष्य परमाणु-पुद्गल को जिस समय जानता है, उसो समय देखता है ? और जिस समय देखता है, उसो समय जानता है ? [21-1 उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ (शक्य) नहीं है। [2] से केणठेगं भंते ! एवं कुच्चद-परमाहोहिए णं मणसे परमाणुपोग्गलं जं समयं जाणति नो तं समयं पासति, जं समयं पासति नो तं समयं जाणइ ? गोयमा ! सागारे से नाणे भवति, अणागारे से सणे भवति, से तेण?णं जाव नो तं समयं जाणइ। [21-2 प्र.] भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहते हैं कि परमावधिज्ञानी मनुष्य परमाणुपुद्गल को जिस समय जानता है, उसो समय देखता नहीं है और जिस समय देखता है, उस समय जानता नहीं है ? [21-2 उ.] गौतम ! परमावधिजानी का ज्ञान साकार (विशेष-ग्राहक) होता है, और दर्शन अनाकार (सामान्य-ग्राहक) होता है। इसलिए ऐसा कहा गया है कि यावत् जिस समय देखता है उस समय जानता नहीं। 22. एवं जाव अणंतपएसियं / [22] इसो प्रकार यावत् अनन्तप्रदेशो स्कन्ध तक कहना चाहिए / 23. केवलो णं भंते ! मगूसे परमाणुपोग्गलं. ! जहा परमाहोहिए तहा केवलो वि जाव अशंतपएसियं / सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति। अट्ठारसमे सए : अट्ठमो उद्देसओ समत्तो // 18-8 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org