________________ अठारहवां शतक : उद्देशक 7] [721 भगवान द्वारा समाधान-प्रस्तुत सू. 37 में मद्रक श्रमणोपासक द्वारा प्रव्रज्या-ग्रहण में असमर्थ होने पर भी मद्र क के उज्ज्वल भविष्य का कथन किया गया है / महद्धिक देवों द्वारा संग्राम निमित्त सहस्ररूपविकुर्वणासम्बन्धी प्रश्न का समाधान ___38. देवे णं भंते ! महिड्डीए जाव महासोक्खे रूवसहस्सं विउस्वित्ता पभू अन्नमन्नेणं सद्धि संगाम संगामित्तए ! हंता, पभू। [38 प्र.] भगवन् ! महद्धिक यावत् महासुख वाला देव, हजार रूपों को विकुर्वणा करके परस्पर एक दूसरे के साथ संग्राम करने में समर्थ है ? [38 उ.] हां, गौतम ! (वह ऐसा करने में) समर्थ है / 39. ताओ णं भंते ! बोंदीओ कि एगजीवफुडाओ, अणेगजीवफुडायो ? गोयमा ! एगजोवफुडाओ, णो अणेगजीवकुडाओ। [36 प्र.] भगवन् ! वैक्रियकृत वे शरीर, एक ही जीव के साथ सम्बद्ध होते हैं, या अनेक जीवों के साथ सम्बद्ध ? _[36 उ.] गौतम ! (वे सभी वैक्रियकृत शरीर) एक ही जीव से सम्बद्ध होते हैं, अनेक जीवों के साथ नहीं। 40. ते णं भंते ! तेति बोंदीणं अंतरा कि एगजोवफुडा अणेगजीवफुडा? गोयमा ! एगजीवफुडा, नो प्रणेगजीवफुडा। [40 प्र.] भगवन् ! उन (वैक्रियकृत) शरीरों के बीच का अन्तराल-भाग क्या एक जीव से सम्बद्ध होता है, या अनेक जीवों से सम्बद्ध ? [40 उ.] गौतम ! उन शरीरों के बीच का अन्तराल भाग एक ही जीव से सम्बद्ध होता है, अनेक जीवों से सम्बद्ध नहीं / विवेचन-महद्धिक देव द्वारा वैक्रियकृत अनेक शरीर : एक जीव से सम्बद्ध-देवों के द्वारा परस्पर संग्राम के निमित्त बैंक्रिय शक्ति से बनाए हुए हजारों शरीर केवल एक ही जीव (वैक्रियकर्ता) से सम्बन्धित होते हैं। कठिन शब्दार्थ-महासोक्खे--महान् सौख्यसम्पन्न / बोंदी-शरीर / एगजीवफुडामओ-एक ही जीव से स्पृष्ट –सम्बद्ध / बोंदीणं अंतरा--विकुर्वित शरीरों के बीच का अन्तराल / ' उन छिन्नशरीरों के अन्तर्गतभाग को शस्त्रादि द्वारा पीडित करने की असमर्थता 41. पुरिसे गं भते ! अंतरे हत्थेण वा ? / ___ एवं जहा अट्ठमसए ततिए उद्देसए ( स० 8 उ० 3 सु० 6 [2] ) जाव नो खलु तस्थ सत्थ कमति / 1. भगवती. (प्रमेय चन्द्रिका टीका) भाग. 13, पृ. 135 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org