________________ মিহাসরিন असुरकुमार देव अनन्त कर्माशों को तीन सौ वर्षों में ; ग्रह, नक्षत्र और तारारूप ज्योतिष्क देव चार सौ वर्षों में और ज्योतिषीन्द्र, ज्योतिष्कराज चन्द्र और सूर्य अनन्त कर्माशों को पांच सौ वर्षों में क्षय कर देते हैं। सौधर्म और ईशानकल्प के देव अनन्त कर्माशों को यावत् एक हजार वर्षों में खपा देते हैं / सनत्कुमार और माहेन्द्रकल्प के देव अनन्त कर्माशों को दो हजार वर्षों में खपा देते हैं। इस प्रकार आगे इसी अभिलाप के अनुसार-ब्रह्मलोक और लान्तककल्प के देव अनन्त कर्माशों को तीन हजार वर्षों में खपा देते हैं। महाशुक और सहस्रार देव अनन्त कर्माशों को चार हजार वर्षों में, आनतप्राणत, पारण और अच्युतकल्प के देव अनन्त कर्माशों को पांच हजार वर्षों में क्षय कर देते हैं। अधस्तन अंबेयक त्रय के देव अनन्त कर्माशों को एक लाख वर्ष में, मध्यमवेयकत्रय के देव अनन्त कर्माशों को दो लाख वर्षों में, और उपरिम अवेयकत्रय के देव अनन्त कर्माशों को तीन लाख वर्षों में क्षय करते हैं। विजय, बैजयंत, जयन्त और अपराजित देव अनन्त कर्माशों को चार लाख वर्षों में क्षय कर देते हैं और सर्वार्थसिद्ध देव, अपने अनन्त कर्माशों को पाँच लाख वर्षों में क्षय कर देते हैं / इसीलिए हे गौतम ! ऐसे देव हैं, जो अनन्त कर्माशों को जघन्य एक सौ, दो सौ या तीन सौ वर्षों में, यावत् पांच लाख वर्षों में क्षय करते हैं / 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कह कर यावत् गौतम स्वामी विचरने लगे। विवेचन—देवों द्वारा अनन्त कर्माशों को क्षय करने का कालमान-प्रस्तुत 4 सूत्रों (48 से 51 तक) में चारों जाति के देवों के द्वारा अनन्त कर्माशों को क्षय करने का कालमान बताया गया है। नीचे इसकी सारिणी दी जाती है कर्मक्षय करने का कालमान . ..-.--- -- ----- ... .. . ... देवों का नाम ..........--. . .. .- 1. वाण व्यन्तर देव 2. असुरकुमार के सिवाय भवनपतिदेव 3. असुरकुमार देव 4. ग्रह-नक्षत्र-तारारूप ज्योतिष्कदेब 5. ज्योतिषीन्द्र चन्द्र-सूर्य 6. सौधर्म-ईशानकल्प के देव 7. सनत्कुमार-माहेन्द्र देव 8. ब्रह्मलोक लान्तक देव 6. महाशुक्र-सहस्रार देव 10. आनत-प्राणत-पारण-अच्युतकल्प देव 11. अधस्तन ग्रेवेयक देव 12. मध्यम प्रैवेयक देव 100 वर्षों में 200 वर्षों में 300 वर्षों में 400 वर्षों में 500 वर्षों में 1000 वर्षों में 2000 वर्षों में 3000 वर्षों में 4000 वर्षों में 5000 वर्षों में एक लाख वर्ष में दो लाख वर्षों में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org