________________ अठारहवां शतक : उद्देशक 7] विवेचन-प्रणिधान : स्वरूप, प्रकार एवं जीवों में प्रणिधान की प्ररूपणा--मन, वचन और काययोग को किसी भी एक पदार्थ या निश्चित विषय-ग्रालम्बन में स्थिर करना प्रणिधान है। वह तीन प्रकार का है। एकेन्द्रिय जीवों में एक कायप्रणिधान और विकलेन्द्रियजीवों में दो-वचनप्रणिधान और कायप्रणिधान तथा पंचेन्द्रियजीवों में तीनों--मन-वचन-कायप्रणिधान पाए जाते हैं।' दुष्प्रणिधान एवं सुप्रणिधान के तीन-तीन भेद तथा नरयिकादि में दुष्परिणधान सुप्रणिधानप्ररूपणा 20. कतिविधे णं भंते ! दुप्पणिहाणे पन्नते? गोयमा ! तिविहे दुप्पणिहाणे पन्नत्ते, तं जहा- मणदुप्पणिहाणे जहेव पणिहाणेणं दंडगो भणितो तहेव दुप्पणिहाणेण वि भाणियव्यो। [20 प्र.] भगवन् ! दुष्प्रणिधान कितने प्रकार का कहा गया है ? [20 उ.] गौतम ! दुष्प्रणिधान तीन प्रकार का कहा गया है। यथा-मनो-दुष्प्रणिधान, वचन-दुष्प्रणिधान और काय-दुष्प्रणिधान / जिस प्रकार प्रणिधान के विषय में दण्डक कहा गया है, उसी प्रकार दुष्प्रणिधान के विषय में भी कहना चाहिए। 21. कतिविधे णं भंते ! सुप्पणिहाणे पन्नत्ते ? गोयमा ! तिविधे सुप्पणिहाणे पनत्ते, तं जहा–मणसुप्पणिहाणे वतिसुप्पणिहाणे कायसुप्पणिहाणे / [21 प्र.] भगवन् ! सुप्रणिधान कितने प्रकार का कहा गया है ? [21 उ.] गौतम ! सुप्रणिधान तीन प्रकार का कहा गया है / यथा-मन:सुप्रणिधान, वचनसुप्रणिधान, और काय-सुप्रणिधान / 22. मणुस्साणं भंते ! कतिविधे सुप्पणिहाणे पन्नत्ते ? एवं चेव। सेवं भंते ! सेवं भंते ! जाब विहरति / [22 प्र.] भगवन् ! मनुष्यों के कितने प्रकार का सुप्रणिधान कहा गया है ? [22 उ.] गौतम ! मनुष्यों के तीनों प्रकार का सुप्रणिधान होता है / 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है'; यों कहकर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं। विवेचन - दुष्प्रणिधान और सुप्रणिधान : स्वरूप, प्रकार और किन जीवों में कितने-कितने ? - मन-वचन-काया की दुष्प्रवृत्ति की एकाग्रता को दुष्प्रणिधान और सुप्रवृत्ति की एकाग्रता को सुप्रणिधान 1. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 750 प्रकर्पण नियते पालम्बने धान-धरणं मनःप्रभतेरिति प्रणिधानम् / (ख) भगवती. चतुर्थ खण्ड (पं. भगवानदास दोशी), पृ. 65 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org