________________ चउत्थो उद्देसओ : 'पारणातिवाय' चतुर्थ उद्देशक : 'प्राणातिपात' जीव और अजीव द्रव्यों में से जीवों के लिए परिभोग्य अपरिभोग्य द्रव्यों का निरूपण 1. तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे जाव भगवं गोयमे एवं क्यासि-.. [1] उस काल और उस समय में राजगृह नगर में, यावत् गौतम स्वामी ने भगवान् महावीर से इस प्रकार पूछा 2. [1] अह भंते ! पाणातियाए मुसावाए जाव मिच्छादसणसल्ले, पाणातिवायवेरमणे जाव मिच्छादसणसल्लवेरमणे, पुढविकाए जाव वणस्सतिकाये, धम्मत्थिकाए अधम्मस्थिकाए पागासत्थिकाये जीवे असरीरपडिबद्ध, परमाणुपोग्गले, सेलेसि पडिवन्नए अणगारे, सब्वे य बादरबोंदिधरा कलेवरा; एए णं दुविहा जीवदव्वा य अजीवदव्वा य जीवाणं परिभोगत्ताए हव्यमागच्छति ? गोयमा! पाणातिवाए जाव एए णं दुविहा जीवदया य अजीवदव्वा य अत्थेगतिया जीवाणं परिभोगत्ताए हव्वमागच्छंति, प्रत्येगतिया जीवाणं जाव नो हन्वमागच्छंति / [2-1 प्र.] भगवन् ! प्राणातिपात, मृषावाद यावत् मिथ्यादर्शन-शल्य और प्राणातिपातविरमण, मृषावाद-विरमण, यावत मिथ्यादर्शनशल्य-विवेक (त्याग) तथा पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक, एवं धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, प्राकाशास्तिकाय, अशरीर-प्रतिबद्ध (शरीररहित) जीव, परमाणु पुद्गल, शैलेशी अवस्था प्रतिपन्न अनगार, और सभी स्थूलकाय धारक (स्थूलाकार) कलेवर, ये सब (मिल कर) दो प्रकार के हैं- (इनमें से कुछ) जीवद्रव्य रूप (हैं) और (कुछ) अजीवद्रव्य रूप / प्रश्न यह है कि क्या ये सभी जीवों के परिभोग में आते हैं ? [2-1 उ.] गौतम ! प्राणातिपात से लेकर सर्वस्थूल कायधर कलेवर तक जो जीवद्रव्यरूप और अजीवद्रव्यरूप हैं, इनमें से कई तो जीवों के परिभोग में आते हैं और कई जीवों के परिभोग में नहीं पाते। [2] से केण?णं भंते ! एवं वुच्चति 'पाणाइवाए जाव नो हव्वमागच्छंति ?' गोयमा ! पाणातिवाए जाव मिच्छादसणसल्ले, पुढविकाइए जाब वणस्सतिकाइए सव्वे य बादरबोंदिधरा कलेवरा, एए णं दुविहा-जीवदव्वा य अजीवदन्वा य, जीवाणं परिभोगत्ताए हव्वमागच्छति / पाणातिवायवेरमणे जाव मिच्छादसणसल्लविवेगे, धम्मत्यिकाये अधम्मत्थिकाये जाव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org