________________ अठारहवां शतक : उद्देशक 4] [7 प्र.] भगवन् ! वनस्पतिकायिक कृतयुग्म हैं, (अथवा) यावत् कल्योजरूप हैं ? / [7 उ.] वे जघन्यपद की अपेक्षा अपद हैं, और उत्कृष्टपद की अपेक्षा भी अपद हैं। अजघन्योत्कृष्टपद की अपेक्षा कदाचित् कृतयुग्म यावत् कदाचित् कल्योज रूप हैं / 8. बेइंदिया पं० पुच्छा। गोयमा ! जहन्नपए कडजुम्मा, उक्कोसपए दावरजुम्मा, अजहन्नमणुक्कोसपए सिय कडजुम्मा जाव सिय कलियोगा। [8 प्र.] भगवन ! द्वीन्द्रियजीवों के विषय में भी इसी प्रकार का प्रश्न है ? [= उ.] गौतम ! (द्वीन्द्रियजीव) जघन्यपद में कृतयुग्म हैं और उत्कृष्ट पद में द्वापरयुग्म हैं, किन्तु अजघन्योत्कृष्ट पद में कदाचित् कृतयुग्म, यावत् कदाचित् कल्योज हैं / 9. एवं जाव चतुरिंदिया। [6] इसी प्रकार यावत् चतुरिन्द्रिय पर्यन्त कहना चाहिए। 10. सेसा एगिदिया जहा बेंदिया। [10] शेष एकेन्द्रियों की वक्तव्यता, द्वीन्द्रिय की वक्तव्यता के समान समझना चाहिए / 11. पंचिदियतिरिक्खजोणिया जाव बेमाणिया जहा नेरतिया। [11] पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्च-योनिकों से लेकर यावत् वैमानिकों तक का कथन नैरयिकों के समान (जानना चाहिए / ) 12. सिद्धा जहा वणस्सतिकाइया / [12] सिद्धों का कथन वनस्पतिकायिकों के समान जानना चाहिए / 13. इत्थीओ णं भंते ! कि कउजुम्माओ० पुच्छा / गोयमा ! जहन्नपदे कडजुम्माओ, उक्कोसपए कङजुम्मायो, अजहन्नमणुषकोसपए सिय कडजुम्मालो जाव सिय कलियोगाओ। [13 प्र.] भगवन् ! क्या स्त्रियाँ कृतयुग्म हैं ? इत्यादि प्रश्न / [13 उ.] गौतम ! वे जघन्यपद में कृतयुग्म हैं और उत्कृष्टपद में भी कृतयुग्म हैं, किन्तु अजघन्योकृष्टपद में कदाचित् कृतयुग्म हैं, और यावत् कदाचित् कल्योज हैं / 14. एवं असुरकुमारिस्थीओ वि जाव थणियकुमारित्थीओ। _ [14] असुरकुमारों की स्त्रियों (देवियों) से लेकर यावत् स्तनितकुमार-स्त्रियों तक इसी प्रकार (पूर्ववत्) (समझना चाहिए।) 15. एवं तिरिक्खजोणिस्यीयो / [15] तिर्यञ्चयोनिक स्त्रियों का कथन भी इसी प्रकार कहना चाहिए। 16. एवं मणुस्सित्थीयो। [16] मनुष्य-स्त्रियों के विषय में भी इसी प्रकार कहना चाहिए / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org