________________ [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 7. दुपदेसिए णं भंते ! खंधे कतिवणे० पुच्छा। गोयमा ! सिय एगवणे सिय दुवण्णे, सिय एगगंधे सिय दुगंधे, सिय एगरसे सिय दुरसे, सिय दुफासे, सिय तिफासे, सिय चउफासे पन्नत्ते। [7 प्र.] भगवन् ! द्विप्रदेशिक स्कन्ध कितने वर्ण आदि वाला है ? इत्यादि प्रश्न / [7 उ.] गौतम ! वह कदाचित् (अथवा कोई-कोई) एक वर्ण, कदाचित् दो वर्ण, कदाचित् एक गन्ध या दो गन्ध, कदाचित् एक रस या दो रस, कदाचित् दो स्पर्श, तीन स्पर्श और कदाचित चार स्पर्श वाला कहा गया है / 8. एवं तिपदेसिए वि, नवरं सिय एगवण्णे, सिय दुवणे, सिय तिवण्णे / एवं रसेसु वि। सेसं जहा दुपदेसियस्स। 8] इसी प्रकार त्रिप्रदेशी स्कन्ध के विषय में भी जानना चाहिए / विशेष बात यह है कि वह कदाचित् एक वर्ण, कदाचित् दो वर्ण और कदाचित् तीन वर्ण वाला होता है / इसी प्रकार रस के विषय में भी ; यावत् तीन रस वाला होता है। शेष सब द्विप्रदेशिक स्कन्ध के समान (जानना चाहिए।) 9. एवं चउपदेसिए वि, नवरं सिय एगवणे जाव सिय चउवण्णे / एवं रसेसु वि / सेसं तं चेव। [6] इसी प्रकार चतुष्प्रदेशी स्कन्ध के विषय में भी जानना चाहिए। विशेष यह है कि वह कदाचित् एक वर्ण, यावत् कदाचित् चार वर्ण वाला होता है। इसी प्रकार रस के विषय में भी (जानना चाहिए।) शेष सब पूर्ववत् है / 10. एवं पंचपदेसिए वि, नवरं सिय एगवणे जाव सिय पंचवणे / एवं रसेसु वि। गंधफासा तहेव / [10] इसी प्रकार पंचप्रदेशी स्कन्ध के विषय में भी जानना चाहिए। विशेष यह है कि वह कदाचित् एक वर्ण, यावत् कदाचित् पांच वर्ण वाला होता है। इसी प्रकार रस के विषय में भी (समझना चाहिए / ), गन्ध और स्पर्श के विषय में भी पूर्ववत् (जानना चाहिए।) 11. जहा पंचपएसिओ एवं जाव असंखेज्जपएसिओ। [11] जिस प्रकार पंचप्रदेशी स्कन्ध के विषय में कहा गया है, उसी प्रकार यावत् असंख्यातप्रदेशी स्कन्ध तक कहना चाहिए। 12. सुहमपरिणए गंभंते ! अणंतपदेसिए खंधे कतिवण्णे ? जहा पंचपदेसिए तहेव निरवसेसं / [12 प्र.] भगवन् ! सूक्ष्मपरिणाम वाला अनन्तप्रदेशी स्कन्ध कितने वर्ण वाला होता है ?, इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org