________________ अठारहवां शतक : उद्देशक 5] [699 [1-2 उ.] गौतम ! जैसे, इम मनुष्यलोक में दो पुरुष हों, उनमें से एक पुरुष प्राभूषणों से अलंकृत और विभूषित हो और एक पुरुष अलंकृत और विभूषित न हो, तो हे गौतम ! (यह बतायो कि) उन दोनों पुरुषों में कौन-सा पुरुष प्रसन्नता उत्पन्न करने वाला, यावत् मनोरम्य लगता है और कौन-सा प्रसन्नता उत्पादक यावत् मनोरम्य नहीं लगता? जो पुरुष अलंकृत और विभूषित है, वह अथवा जो पुरुष अलंकृत और विभूषित नहीं है वह ? __ (गौतम) भगवन् ! उन दोनों में से जो पुरुष अलंकृत और विभूषित है, वही प्रसन्नता उत्पन्न करने वाला यावत् मनोरम्य है, और जो पुरुष अलंकृत और विभूषित नहीं है, वह प्रसन्नता उत्पन्न करने वाला, यावत् मनोरम्य नहीं है / (भगवान्—) हे गौतम ! इसी कारण से ऐसा कहा गया है कि यावत् (जो अविभूषित शरीर वाले असुरकुमार हैं) वे प्रसन्नता उत्पन्न करने वाले यावत् मनोरम्य नहीं हैं। 2. दो भते ! नागकुमारा देवा एगंसि नागकुमारावासंसि० ? एवं चेव / [2 प्र. भगवन् ! दो नागकुमारदेव एक नागकुमारावास में नागकुमाररूप में उत्पन्न हुए / इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न ? 12 उ.] गौतम ! पूर्वोक्तरूप से समझना चाहिए / 3. एवं जाव थणियकुमारा। [3] इसी प्रकार यावत् स्तनितकुसार तक (जानना चाहिए / ) 4. वामंतर-जोतिसिय-वेमाणिया एवं चेव / [4] वाण-व्यन्तर ज्योतिष्क और वैमानिक देवों के विषय में भी इसी प्रकार (समझना चाहिए।) विवेचन एक ही निकाय के दो देवों में परस्पर अन्तर-प्रस्तुत चार सूत्रों (1-4) में चारों प्रकार के देवों में से एक ही आवास में उत्पन्न होने वाले दो देवों में प्रसन्नता, सुन्दरता और मनोरमता में अन्तर का कारण क्रमश: वैक्रियशरीरसम्पन्नता और अवैक्रियशरीरयुक्तता बताया गया है। वैसे तो प्रत्येक देव के वैक्रियशरीर भवधारणीय (जन्म से) होता है, किन्तु यहाँ अवैक्रियशरीर युक्त कहने का तात्पर्य है-अविभूषित शरीरयुक्त और वैक्रिय शरीरयुक्त कहने का अर्थ है--विभूषित शरीर वाला / प्राशय यह है कि कोई भी देव जब देवशय्या में उत्पन्न होता है, तब सर्वप्रथम वह अलंकार आदि विभूषा से रहित होता है। इसके पश्चात् क्रमशः वह अलंकार आदि धारण करके विभूषित होता है / अतः यहाँ वैक्रिय शरीर का अर्थ विभूषित शरीर है और अवैक्रिय शरीर का अर्थ है-अविभूषित शरीर / ' 1. भगवतीसूत्र विवेचन (पं. घेवरचन्द जी), भा. 4, पृ. 2702 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org