________________ पंचमो उद्देसओ : 'असुरे' पंचम उद्देशक : 'असुर' एक निकाय के दो देवों में दर्शनीयता-प्रदर्शनीयता आदि के कारणों का निरूपण 1. [1] दो भंते ! असुरकुमारा एगसि असुरकुमारावासंसि असुरकुमार देवत्ताए उववना / तस्थ णं एगे असुरकुमारे देवे पासादीए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे, एगे असुरकुमारे देवे से गं नो पासादीए नो दरिसणिज्जे नो अभिरूवे नो पडिरूवे, से कहमेयं भंते ! एवं ? गोयमा ! असुरकुमारा देवा दुविहा पन्नत्ता, तं जहा-बेउब्वियसरीरा य अवेउब्वियसरीरा य / तत्थ पंजे से वेटिवयसरीरे असुरकुमारे देवे से णं पासादीए जाव पडिस्वेतस्थ णं जे से अवेउध्वियसरीरे असुरकुमारे देवे से गं नो पासादीए जाव नो पडिरूवे। 11-1 प्र. भगवन् ! दो असुरकुमारदेव, एक ही असुरकुमारावास में असुरकुमारदेवरूप में उत्पन्न हुए / उनमें से एक असुरकुमारदेव प्रसन्नता उत्पन्न करने वाला (प्रासादीय), दर्शनीय, सुन्दर और मनोरम होता है, जबकि दूसरा असुरकुमार देव न तो प्रसन्नता उत्पन्न करने वाला होता है, न दर्शनीय, सुन्दर और मनोरम होता है, भगवन् ऐसा क्यों होता है ? [1-1 उ.] गौतम ! असुरकुमारदेव दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा-वैक्रिय शरीर वाले (विभूषित शरीर वाले) और अवैक्रिय शरीर वाले (अविभूषित शरीर वाले)। उनमें से जो वैक्रिय शरीर वाले असु र कुमार देव होते हैं, वे प्रसन्नता उत्पन्न करने वाले, दर्शनीय सुन्दर और मनोरम होते हैं, किन्तु जो अवैत्रिय शरीर वाले हैं, वे प्रसन्नता उत्पन्न करने वाले यावत मनोरम नहीं होते। [2] से केणढणं भंते ! एवं बुच्चइ 'तत्थ णं जे से वेउब्धियसरीरे तं चेव जाव नो पडिस्वे' ? 'गोयमा ! से जहानामए इहं मणुयलोगंसि दुवे पुरिसा भवंति--एगे पुरिसे प्रलंकिय विभूसिए, एगे पुरिसे प्रणलंकियविभूसिए, एएसि णं गोयमा ! दोण्हं पुरिसाणं कयरे पुरिसे पासादीए जाव पडिरूवे ? कयरे पुरिसे नो पासादीए जाव नो पडिरूवे ? जे वा से पुरिसे अलंकिय विभूसिए, जे वा से पुरिसे अणलंकियविभूसिए ?' _ 'भगवं ! तत्थ णं जे से पुरिसे अलंकियविभूसिए से गं पुरिसे पासादीये जाय पडिरूवे, तस्थ गंजे से पुरिसे अणलंकियविभूसिए से णं पुरिसे नो पासादीए जाव नो पडिरूवे' / से तेण?णं जाव नो पडिरूवे / [1-2 प्र.] भगवन् ! ऐसा क्यों कहते हैं कि वैक्रिय शरीर वाले देव प्रसन्नता-उत्पादक यावत् मनोरम होते हैं, अवैक्रिय शरीर वाले नहीं होते ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org