________________ अठारहवां शतक : उद्देशक 4] [693 कषाय : प्रकार तथा तत्सम्बद्ध कार्यों का कषायपद के अतिदेशपूर्वक निरूपण 3. कति णं भंते ! कसाया पन्नत्ता ? गोयमा ! चत्तारि कसाया पन्नत्ता, तं जहा–कसायपयं निरवसेसं भाणियन्वं जाव निज्जरिस्संति लोभेणं / [3 प्र.] भगवन् ! कषाय कितने प्रकार का कहा गया है ? [3 उ.] गौतम ! कषाय चार प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार-इत्यादि प्रज्ञापनासूत्र का चौदहवाँ समग्र कषाय पद, यावत् लोभ के वेदन द्वारा अष्टविध कर्मप्रकृतियों की निर्जरा करेंगे, यहाँ तक कहना चाहिए। विवेचन-नैरपिकों आदि की चार कषायों से निर्जरा-प्रस्तुत सूत्र 3 में प्रज्ञापना सूत्र के चौदहवें कषाय पद का अतिदेश किया गया है। इसमें सारभूत तथ्य यह है कि नैरयिकादि जीवों के आठों ही कर्मप्रकृतियों की निर्जरा क्रोधादि चार कषायों के वेदन द्वारा होती है, क्योंकि नैरयिकादि जीवों के पाठों ही कर्म उदय में रहते हैं और उदय में आए हुए कर्मों की निर्जरा अवश्य होती है। नैरयिकादि कषाय के उदय वाले हैं। कषाय का उदय होने पर उसके वेदन के पश्चात् कर्मों की निर्जरा होती है / जैसे कि प्रज्ञापना में कहा है-क्रोधादि के द्वारा वैमानिकों आदि के पाठों कर्मों की निर्जरा होती है। युग्म : कृतयुग्मादि चार और स्वरूप 4 [1] कति णं भंते ! जुम्मा पन्नत्ता ? गोयमा ! चत्तारि जुम्मा पन्नत्ता, सं जहा-कडजुम्मे तेयोए दावरजुम्मे कलिओए। [4-1 प्र.] भगवन् ! युग्म (राशियां) कितने कहे गए हैं ? [4-1 उ.गौतम ! युग्म चार कहे गए हैं। यथा-कृतयुग्म, ज्योज, द्वापरयुग्म और कल्योज। [2] से केण?णं भंते ! एवं वुच्चति-जाव कलिमोए ? गोयमा ! जे णं रासो चउक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे चउपज्जवसिए से तं कडजुम्मे / जे गं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे तिपज्जवसिए से तं तेयोए / जे णं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे दुपज्जवसिए से तं दावरजुम्मे / जे णं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे एगपज्जवसिए से तं कलिओये, से तेण?णं गोतमा! एवं बुच्चति जाव कलिओए। [4-2 प्र.] भगवन् ! आप किस कारण से कहते हैं कि यावत् कल्योज-पर्यन्त चार राशियाँ कही गई हैं ? 1. (क) भगवती सूत्र अ. वृत्ति, पत्र 745 (ख) 'वेमाणिया णं भंते ! कइहिं ठाणेहि अट्ठ कम्मपयडीओ निजरिस्संति ?' 'गोयमा ! चहि ठाहि, तं जहा—कोहेणं जाव लोभेणं ति।' -~प्रज्ञापना. पद 14, भा. 1, पृ. 234-236 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org