________________ 520] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र तेसु अणेगसयसह० जाव किच्चा जाई इमाई पाउकाइयविहाणाई भवंति, तं जहा--उस्साणं जाव' खातोदगाणं, तेसु अणेगसयसह जाव पच्चायाइस्सति, उस्सण्णं च णं खारोदएसु खातोदएसु, सम्वत्थ वि णं सत्थवज्झे जाव किच्चा जाई इमाई पुढविकाइयविहाणाई भवंति, तं जहा–पुढवीणं सक्कराणं जावर सूरकंताणं, तेसु अणेगसय जाब पच्चायाहिति, उस्सन्नं च णं खरबादरपुढविकाइएसु, सम्वत्थ विणं सत्यवझे। जाव किच्चा रायगिहे नगरे बाहिं खरियत्ताए उववज्जिहिति / तत्थ वि णं सत्थवज्झे जाव किच्चा दोच्चं पि रायगिहे नगरे अंतोखरियताए उववजिहिति / तत्थ वि णं सत्थवज्झे जाव किच्चा इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे बासे विझगिरियादमूले बेभेले सन्निवेसे माहणकुलंसि दारियत्ताए पच्चायाहिति / तए णं तं दारियं अम्मापियरो उम्मुक्कबालभावं जोन्वणमणुप्पत्तं पडिरूविएण सुकेणं पडिरूविएणं विणएणं पडिरूवियस्स भत्तारस्त भारियताए दलइस्संति / साणं तस्स भारिया भविस्सति इट्ठा कंता जाव अणुमया भंडकरंडगसमाणा तेल्लकेला इव सुसंगोविया, चेलपेला इव सुसंपरिहिया, रयणकरंडओ विव सुरक्खिया सुसंगोविया-'मा णं सोयं मा णं उण्हं जाव परीसहोवसग्गा फुसंतु'। तए णं सा दारिया अन्नदा कदापि गुम्विणी ससुरकुलाओ कुलघरं निज्जमाणो अंतरा दवग्गिजालाभिहया कालमासे कालं किच्चा दाहिणिल्लेसु अग्गिकुमारेसु देवेसु देवत्ताए उववन्जिहिति / [138] वहाँ से वह यावत् निकल कर स्त्रीरूप में उत्पन्न होगा / वहाँ भी शस्त्राघात से मर कर दाहज्वर की वेदना से यावत् दूसरी बार पुन: छठी तमःप्रभा पृथ्वी में उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले नरकावासों में नैरयिक होगा। वहाँ से यावत् निकल कर पुनः दूसरी बार स्त्रीरूप में उत्पन्न होगा। वहाँ भी शस्त्र से वध होने पर यावत् काल करके पंचम धूमप्रभा पृथ्वी में उत्कृष्ट काल की स्थिति वाला नैयिक होगा। वहाँ से यावत् मर कर उर परिसों में उत्पन्न होगा। वहाँ भी शस्त्राघात से यावत् मर कर दूसरी बार पंचम नरकपृथ्वी में, यावत् वहाँ से निकल कर दूसरी बार पुन: उर:परिसॉं में उत्पन्न होग।। वहाँ से यावत् काल करके चौथी पंकप्रभा पृथ्वी में उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले नरकावासों में नैरयिक रूप में उत्पन्न होगा, यावत् वहाँ से निकलकर सिंहों में उत्पन्न होगा। वहाँ भी शस्त्र द्वारा मारा जाकर यावत् दूसरी बार चौथे नरक में उत्पन्न होगा। यावत् वहाँ से निकल कर दूसरी बार सिंहों में उत्पन्न होगा। वहाँ से यावत काल करके तीसरी बालुकाप्रभा नरकपृथ्वो में उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होगा। यावत् वहाँ से निकल कर पक्षियों में उत्पन्न होगा। वहाँ भी शस्त्राघात से मर कर फिर दूसरी बार तीसरी बालुकाप्रभा पृथ्वी में उत्पन्न होगा। वहाँ से यावत् शस्त्राघात से मर कर दुसरी बार पक्षियों में उत्पन्न होगा। वहाँ से यावत् काल करके दूसरी शर्कराप्रभा पृथ्वी में उत्पन्न होगा। वहाँ से यावत् निकल कर सरीसृपों में उत्पन्न होगा। वहाँ भी शस्त्र से मारा जा कर यावत् दूसरी बार भी शर्कराप्रभा पृथ्वी में उत्पन्न होगा। वहाँ से यावत् काल करके दूसरी बार पुनः सरीसृपों में उत्पन्न होगा। वहाँ से यावत् काल करके इस रत्नप्रभा पृथ्वी की उत्कृष्ट काल को स्थिति वाले 1. 'जाब' पद सूचक पाठ--'हिमाणं महियाण' ति / 2. 'जाब' पद सूत्रक पाठ- 'बालुयाणं उवलाणं' इत्यादि / -भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 694 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org