________________ 652] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र आहारक-अनाहारकमाव की अपेक्षा का आशय- सभी सिद्धजीव सदैव अनाहारक रहते हैं, इसलिए उनके विषय में प्राहारकभाव की अपेक्षा से एकवचन-बहुवचन-परक प्रश्न नहीं किया गया है / संसारी जीव विग्रहगति में अनाहारक रहते हैं, शेष समय में प्राहारक / इसलिए एक या अनेक पाहारकजीव या संसारी सभी जीव आहारकभाव की अपेक्षा से प्रथम नहीं हैं, क्योंकि अनादिभवों में अनन्त बार उन्होंने आहारकभाव प्राप्त किया है। संसारी जीव विग्रहगति में ही अनाहारक होता है, इसलिए जब एक या अनेक संसारी जीव विग्रहगति में होते हैं, तब वह अप्रथम होते हैं। क्योंकि उन्हें विग्रहगति में अनाहारकपन पहले अनन्त बार प्राप्त हो चुका है। किन्तु जब एक या अनेक संसारी जीव सिद्ध होते हैं. तब अनाहारकभाव की अपेक्षा से उन्हें अनाहारकत्व पहले कभी प्राप्त नहीं हुआ था, इसलिए उन्हें प्रथम कहा गया है। 12 वें सूत्र में इसी दृष्टि से कहा गया है-सिय पढमे, सिय अपढमे / ', किन्तु नैरयिक से वैमानिक तक के जीव विग्रहगति ति में अनन्त बार अनाहारकत्व प्राप्त कर चुके हैं, इस अपेक्षा से उन्हें अप्रथम कहा गया है / किन्तु एक या अनेक सिद्धजीव अनाहारकभाव की अपेक्षा से प्रथम होते हैं, क्योंकि उन्हें पहले कभी अनाहारकत्व प्राप्त नहीं हुआ था / ' भवसिद्धिक, अभवसिद्धिक तथा नोभवसिद्धिक-नोग्रभवसिद्धिक के विषय में भवसिद्धिकत्वादि दृष्टि से प्रथम-अप्रथम प्ररूपण 18. भवसिद्धोए एगत्त-पुहत्तणं जहा पाहारए (सु० 9-11) / [18] भवसिद्धिक जीव (भवसिद्धिकपन की अपेक्षा से) एकत्व-अनेकत्व दोनों प्रकार से (सु. 6-11 में उल्लिखित) आहारक जीव के समान प्रथम नहीं, अप्रथम है, इत्यादि कथन करना चाहिए। 19. एवं अभवसिद्धीए वि / [16] इसी प्रकार अभवसिद्धिक एक या अनेक जीव के विषय में भी जान लेना चाहिए। 20. नोभवसिद्धीए-नोअभवसिद्धीए णं भंते ! जीवे नोभव० पुच्छा। गोयमा ! पढमे, नो अपढमे / 20 प्र. भगवन् ! नो-भवसिद्धिक-नो-प्रभवसिद्धिक जीव नोभवसिद्धिक-नो-प्रभवसिद्धिकभाव की अपेक्षा से प्रथम है या अप्रथम ? [20 उ.] गौतम ! वह प्रथम है, अप्रथम नहीं / 21. णोभवसिद्धीय-नोअभवसिद्धीये णं मंते ! सिद्ध नोमव० ? एवं चेव / 21 प्र.] भगवन् ! नोभवसिद्धिक-नोअभव सिद्धिक सिद्धजीव नोभवसिद्धिक-नोअभवसिद्धिकभाव की अपेक्षा से प्रथम हैं या अप्रथम ? __ [21 उ.] पूर्ववत् समझना चाहिए। 1. भगवतीमूत्र, अ. वृत्ति, पत्र 734 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org