________________ 688] [ध्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [21-1 उ.] हाँ. माकन्दिकपुत्र ! (उनमें परस्पर भेद) है / [2] से केपट्टणं भंते ! एवं बुच्चति 'जीवाणं पावे कम्मे जे य कडे जाव जे य कन्जिस्सति अस्थि याइं तस्स णाणत्ते ? मागंदियपुत्ता ! से जहानामए-केयि पुरिसे घणु परामुसति, धणुप० 2 उसुपरामुसति, उसुप०२ ठाणं ठाति, ठा० 2 आयतकण्णायतं उसुकरेति, प्रा० क० 2 उड्ड वेहासं उबिहइ / से नूणं मागंदियपुत्ता ! तस्स उसुस्स उड्ड वेहासं उन्वीढस्स समाणस्स एयति विणाणत्तं, जाव तं तं भावं परिणमति वि जाणत्तं?' हता, भगवं! एयति विणाणत्तं, जाव परिणति वि गाणतं / ' से तेण?णं मागंदियपुत्ता ! एवं बुच्चति जाव तं तं भावं परिणति वि णाणत्तं / [21-2 प्र.] भगवन् ! आप ऐसा किस कारण से कहते हैं कि जीव ने जो पापकर्म किया है, यावत् करेगा, उनमें परस्पर कुछ भेद है ? 21-2 उ.] माकन्दिकपुत्र ! जैसे कोई पुरुष धनुष को (हाथ में) ग्रहण करे, फिर वह बाण को ग्रहण करे और अमुक प्रकार की स्थिति (प्राकृति) में खड़ा रहे, तत्पश्चात् बाण को कान तक खीचे और अन्त में, उस बाण को प्रकाश में ऊँचा फेंके, तो मान्दिकपुत्र! प्राकाश फेंके, तो हे माकन्दिकपुत्र ! आकाश में ऊँचे फके हुए उस बाण के कम्पन में भेद (नानात्व) है, यावत्-वह उस-उस रूप में परिणमन करता है। उसमें भेद है न ? (उत्तर-) हाँ, भगवन् ! उसके कम्पन में, यावत् उसके उस-उस रूप के परिणाम में भी भेद है।' (भगवान् ने कहा-) हे माकन्दिकपुत्र ! इसी कारण ऐसा कहा जाता है कि उस कम के उस-उस रूपादि-परिणाम में भी भेद (नानात्व) है / 22. नेरतियाणं भंते ! पावे कम्मे जे य कडे० / एवं चेव। [22 प्र.] भगवन् ! नरयिकों ने (अतीत में) जो पापकर्म किया है, यावत् (भविष्य में) करेंगे, क्या उनमें परस्पर कुछ भेद है ? [22 उ.] (हाँ, माकन्दिकपुत्र ! उनमें परस्पर भेद है / ) वह उसी प्रकार (पूर्ववत् समझना चाहिए / ) 23. एवं जाव वेमाणियाणं / [23] इसी प्रकार यावत् वैमानिकों तक (जान लेना चाहिए / ) विवेचन----कृत पापकर्म के भूत-वर्तमान भविष्यत्कालिक परिणामों में भेद का दृष्टान्तपूर्वक निरूपण-प्रस्तुत तीन सूत्रों (21-22-23) में जीवों के द्वारा किये गए, किये जा रहे तथा भविष्य में किये जाने वाले पापकर्मों के परिणामों में परस्पर भेद को धनुष-बाण फेंकने के दृष्टान्त द्वारा सिद्ध किया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org