________________ [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 7. भूयाणंदे णं भंते ! हस्थिराया कतोहितो अणंतरं उध्वट्टित्ता भूयाणंद० ? एवं जहेव उदायो जाव अंतं काहिति। [7 प्र.] भगवन् ! भूतानन्द नामक हस्तिराज किस गति से मर कर सीधा भूतानन्द हस्तिराज रूप में यहाँ उत्पन्न हुना? [7 उ.] गौतम ! जिस प्रकार उदायी नामक हस्तिराज की वक्तव्यता कही, उसी प्रकार भूतानन्द हस्तिराज की भी वक्तव्यता, यावत् सब दुःखों का अन्त करेगा, (तक) जाननी चाहिए। विवेचन-उदायो और भूतानन्द के भूत और भविष्य का कठन---उदायी और भूतानन्द श्रेणिक राजा के पुत्र कणिक राजा के प्रधान हस्ती थे। प्रस्तुत 5 सूत्रों (सू. 3 से 7 तक) में इन दोनों के भूतकालीन भव (असुरकुमार देव भव) का और भविष्य में प्रथम नरक का प्रायुष्य पूर्ण कर महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्ध-बुद्ध-मुक्त होने का कथन किया है।' कठिनशब्दार्थ-कमोहितो-कहाँ से-किस गति से ? काहिइ-करेगा / ताइफल को हिलाने-गिराने आदि से सम्बन्धित जीवों को लगने वाली क्रिया 8. पुरिसे गं भंते ! तालमारुभइ, तालं आरुभित्ता तालानो तालफलं पचालेमाणे वा पवाडेमाणे वा कतिकिरिए ? गोयमा ! जावं च णं से पुरिसे तालमारुभति, तालमारुभित्ता तालाओ तालफलं पचालेइ वा पवाडेइ वा तावं च णं से पुरिसे काइयाए जाव पंचहि किरियाहि पुटु / जेसि पि य णं जीवाणं सरीरेहितो ताले निव्वत्तिए तालफले निस्वत्तिए ते वि णं जीवा काइयाए जाव पंचहि किरियाहिं पुट्ठा। [8 प्र.] भगवन् ! कोई पुरुष, ताड़ के वक्ष पर चढ़े और फिर उस ताड़ से ताड़ के फल को हिलाए अथवा गिराए तो उस पुरुष को कितनी क्रियाएँ लगती हैं ? [8 उ.] गौतम ! जब तक वह पुरुष, ताड़ के वृक्ष पर चढ़ कर, फिर उस ताड़ से ताड़ के फल को हिलाता है अथवा नीचे गिराता है, तब तक उस पुरुष को कायिकी प्रादि पांचों क्रियाएँ लगती हैं। जिन जीवों के शरीर से ताड़ का वृक्ष और ताड़ का फल उत्पन्न हुआ है, उन जीवों को भी कायिकी आदि पांचों क्रियाएँ लगती हैं। 9. अहे णं भंते ! से तालफले अप्पणो गरुययाए जाव पच्चोवयमाणे जाई तत्थ पाणाई जाव जीवियाओ ववरोवेति तएणं भंते ! से पुरिसे कति किरिए ? गोयमा! जावं च णं से पुरिसे तालफले अप्पणो गरुययाए जाव जीवियाओ ववरोवेति तावं च णं से पुरिसे काइयाए जाव चहि किरियाहि पुढे / जेसि पि य णं जीवाणं सरीरेहितो ताले निन्वत्तिए ते विणं जीवा काइयाए जाव चहि किरियाहिं पुट्ठा। जेसि पि य णं जीवाणं सरीरेहितो 1. (क) वियाहपथ्णत्तिसुत्तं भा. 2 (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त) पृ. 773-774 (ख) भगवती. अ. वत्ति, पत्र 720 2. भगवती. (हिन्दी-विवेचन) भा. 5, पृ. 2594 न 720 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org