________________ 622) व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [15 प्र. भगवन् ! औदारिकशरीर-चलना को औदारिकशरीर-चलना क्यों कहा जाता है ? (15 उ.] गौतम ! जीवों ने औदारिक शरीर में वर्तते हुए, औदारिक शरीर के योग्य द्रव्यों को, औदारिक शरीर रूप में परिणमाते हुए भूतकाल में औदारिक शरीर की चलना की थी, वर्तमान में चलना करते हैं, और भविष्य में चलना करेंगे, इस कारण से हे गौतम ! औदारिक शरीर से सम्बन्धित चलना को औदारिकशरीर-चलना कहा जाता है / 16. से केणटुणं भंते ! एवं बुच्चइ-वे ब्वियसरीरचलणा, वेउब्वियसरीरचलणा? एवं चेव, नवरं वेउम्वियसरोरे वट्टमाणा। 16 प्र.] भगवन् ! वैक्रियशरीर-चलना को वैक्रियशरीर चलना किस कारण कहा जाता है? 16 उ. पूर्ववत् (औदारिक शरीरचलना के समान) समग्र कथन करना चाहिए। विशेष यह है-औदारिक शरीर के स्थान पर 'वैक्रिय शरीर में वर्तते हुए', कहना चाहिए। 17. एवं जाव कम्मगसरीरचलणा। [17] इसी प्रकार यावत्-कार्मण-शरीर चलना तक कहना चाहिए। 18. से केपट्टणं भंते ! एवं बुच्चइ-सोतिदियचलणा, सोतिदियचलणा? गोयमा ! जं णं जीवा सोतिदिए वट्टमाणा सोतिदियपायोग्गाई दवाई सोतिदियत्ताए परिणामेमाणा सोति दियचलणं चलिसु वा, चलति वा, चलिस्संति वा, से तेण?णं जाव सोतिदियचलणा सोतिदियचलणा। [18 प्र.] भगवन् ! श्रोत्रेन्द्रिय-चलना को श्रोत्रेन्दिय-चलना क्यों कहा जाता है ? [18 उ.] गौतम ! चंकि श्रोत्रेन्द्रिय को धारण करते हुए जीवों ने श्रोत्रेन्द्रिय योग्य द्रव्यों को श्रोत्रेन्द्रिय-रूप में परिणमाते हए श्रोत्रेन्द्रियचलना की थी, वर्तमान में (श्रोत्रेन्द्रियचलना) करते हैं और भविष्य में करेंगे, इसी कारण से श्रोत्रेन्द्रिय-चलना को श्रोत्रेन्द्रिय चलना कहा जाता है। 19. एवं जाव फासिदियचलणा। [19] इसी प्रकार यावत् स्पर्शेन्द्रिय चलना तक जानना चाहिए। 20. से केपट्टणं भंते ! एवं वृच्चइ-मणजोगचलणा, मणजोगचलणा? गोयमा ! जं णं जीवा मणजोए वट्टमाणा मणजोगप्पायोग्गाई दवाइं मणजोगत्ताए परिणामेमाणा मणचलणं चलिसु वा, चलंति वा, चलिस्संति वा, से तेण?णं जाव मणजोगचलणा, मणजोगचलणा। [20 प्र.) भगवन् ! मनोयोग-चल ना को मनोयोग-चलना क्यों कहा जाता है ? {20 उ.] गौतम ! चंकि मनोयोग को धारण करते हुए जीवों ने मनोयोग के योग्य द्रव्यों को मनोयोग रूप में परिणमाते हुए मनोयोग को चलना की थी, वर्तमान में मनोयोग-चलना करते हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org