________________ सोलहवां शतक : उद्देशक 6] [573 प्रगारधम्म वा अणगारधम्म वा 4 / जंगं समणे भगवं महावीरे एगं महं से यं गोवरगं जाव पडिबुद्ध तं णं समणस्स भगवतो महावीरस्स चाउवण्णाइण्णे समणसंघे, तं जहा–समणा समणीओ सावगा सावियाओ 5 / जे णं समणे भगवं महावीरे एग महं पउमसरं जाव पडिबद्ध तं मं समणे जाव वीरे चविहे देवे पण्णवेति, तं जहा-भवणवासी वाणमंतरे जोतिसिए वेमाणिए 6 / ज णं समणे भगवं महावीरे एगं महं सागरं जाव पडिबुद्ध तं णं समणेणं भगवता महावीरेण अणादीए अणबदग्गे जाव संसारकतारे तिण्णे 7 / ज णं समणे भगवं महावीरे एगं महं दिणकरं जाव पडिबुद्ध त समणस्स भगवतो महावीरस्स अणंते अणुत्तरे जाव' केवलवरनाण-दसणे समुप्पन्न 8 / जं णं समणे जाव वीरे एग महं हरिवलिय जाव पडिबुद्ध तं गं समणस्स भगवतो महावीरस्स ओराला कित्तिवण्णससिलोया सदेवमणुयासुरे लोगे परितुवंति---'इति खलु समणे भगवं महावीरे, इति खलु समणे भगवं महावीर' 9 / जं गं समणे भगवं महावीर मंदरे पन्वते मंदरचलियाए जाव पडिबद्ध तं णं समणे भगवं महावीरे सदेवमणुयासुराए परिसाए मशगए केवली धम्म प्राधवेति जाव उवदंसेति 10 / [21] प्रथम स्वप्न में श्रमण भगवान महावीर ने जो एक महान भयंकर और तेजस्वी रूप वाले ताइवक्षसम लम्बे पिशाच को पराजित किया हुना देखा, उसका फल यह हुआ कि श्रमण भगवान् महावीर ने मोहनीय कर्म को समूल नष्ट किया / / 1 / / दूसरे स्वप्न में जो श्रमण भगवान महावीर श्वेत पंख वाले एक महान पुस्कोकिल को देखकर जागृत हुए, उसका फल यह कि भगवान् महावीर शुक्लध्यान प्राप्त करके विचरे / / 2 // तीसरे स्वप्न में श्रमण भगवान् महावीर जो चित्र-विचित्र पंखों वाले एक पुस्कोकिल को देख कर जागृत हुए, उसका फल यह हुआ कि श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने स्वसमय-परसमय के विविध-विचार-युक्त (चित्र-विचित्र) द्वादशांग गणिपिटक का कथन किया, प्रज्ञप्त किया, प्ररूपित किया, दिखलाया, निदर्शित किया और उपर्शित किया / यथा--प्राचार (प्राचारांग) सूत्रकृत (सूत्रकृतांग) यावत् दृष्टिवाद / / 3 / / चौथे स्वप्न में भगवान महावीर, जो एक सर्वरत्नमय महान मालायुगल को देख कर जागृत हुए, उसका फल यह कि श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने दो प्रकार का धर्म बतलाया। यथा---अगारधर्म और अनगार-धर्म / / 4 / / पाँचवें स्वप्न में श्रमण भगवान महावीर एक श्वेत महान् गोवर्ग देख कर जागृत हुए, उसका फल यह कि श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के चातुर्वर्ण्य-युक्त (चार प्रकार का) श्रमण संघ हुआ / यथा-श्रमण, श्रमणी, श्रावक और श्राविका // 5 // छठे स्वप्न में श्रमण भगवान महावीर एक कुसुमित पद्मसरोवर को देख कर जागृत हुए, उसका फल यह कि श्रमण भगवान महावीर ने चार प्रकार के देवों की प्ररूपणा की। यथा-भवनवासी, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक / / 6 / / 1. 'जाव' पद-सुनक पाठ-—निवाघाए, निरावरणे कसिणे पडिपूष्णे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org