________________ 516] [व्याख्याप्राप्तिसून एक शंका : समाधान-समवायांगसूत्र की टीका से ज्ञात होता है कि उत्सपिणी काल में 'विमल' नामक इक्कीसवें तीर्थकर होंगे और वे अवसर्पिणी काल के चतुर्थ तीर्थंकर के स्थान में प्राप्त होते हैं। उनसे पहले के अर्वाचीन तीर्थंकरों के अन्तर काल में करोड़ों सागरोपम व्यतीत हो जाते हैं, जबकि यह महापद्म राजा तो बारहवें देवलोक की बाईस सागरोपम की स्थिति पूर्ण करके होगा, ऐसा मूलपाठ में उल्लेख है। इसलिए इसके साथ महापद्म की संगति बैठनी कठिन है। किन्तु वृत्तिकार ने दूसरी तरह से इसकी संगति इस प्रकार बिठाई है-बाईस सागरोपम की स्थिति के पश्चात् जो तीर्थंकर उत्सर्पिणी काल में होगा, उसका नाम 'विमल' होगा ऐसा संभवित है / क्योंकि एक ही नाम के अनेक महापुरुष होते हैं।' कठिन शब्दों के अर्थ-विज्झगिरिपायमूले-विन्ध्याचल की तलहटी में / पच्चायाहितिउत्पन्न होगा / दारए-बालक / भारगसो-भार प्रमाण / पुरुष जितना बोझ उठा. सके, उसे अथवा 120 पल-प्रमाण वजन को 'भार' या भारक कहते हैं / यही भार-प्रमाण है / कुभग्गसो-अनेक कुम्भ-प्रमाण / कुम्भ-प्रमाण के तीन भेद हैं-जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट / 60 आढक प्रमाण का जघन्य कुम्भ, 80 आढक प्रमाण का मध्यम कुम्भ और 100 पाढक प्रमाण का उत्कृष्ट कुम्भ होता है। पउमयासे- पद्मवर्षा / सेणाकम्म-सैनिक कर्म / संखतल-विमल-सण्णिकासे : दो रूप : दो अर्थ-(१) शंख-दल-शंखखण्ड, (2) शंखतल के समान विमल-निर्मल / समुप्पज्जिस्सइ--समुत्पन्न होगा। अभिजाहिति, णिज्जाहिति----आएगा और जाएगा, आवागमन करेगा। विपडिवज्जिहिति–विपरीतता अपनाएगा। आओसेहिति-प्राक्रोशवचन कहेगा, झिड़केगा / अवहसिाहिति-हंसी उड़ाएगा। निच्छोडेहिति-पृथक् करेगा / निन्भच्छेहिति--भर्त्सना करेगा-दुर्वचन बोलेगा / णिरु भेहिति-निरोध करेगा-रोकेगा। पमारेहिइमारना प्रारम्भ करेगा। उद्दवेहिति-उपद्रव करेगा। आच्छिदिहिइ-थोड़ा छेदन करेगा। विच्छिदिहिति-विशेष रूप से या विविध प्रकार से छेदन करेगा। मिदिहिति-तोड़ फोड़ करेगा / अवहरि. हिति--अपहरण करेगा, उछाल देगा / णिनगरे करेहिति-नगरनिर्वासन करेगा। निविसए करेहिति-देश-निकाला दे देगा। विष्णवित्तए-विनति करें। विरमंतु-रुके, बंद करें। पउप्पएप्रपौत्रशिध्य-शिष्य सन्तान / रहचरियं-रथचर्या / आयावेमाणं--प्रातापना लेते हए / रहसिरेणंरथ के सिरे से / गोल्लावेहिति-गिरा देगा / प्रभुणा-समर्थ होते हुए। तितिविखयं-तितिक्षा की। सहयं-घोड़े सहित / सरहं रथसहित / ससारहियं सारथिसहित / राज्य और राष्ट्र में अन्तर-प्राचीन काल में राजा, मन्त्री, राष्ट्र, कोश, दुर्ग (किला), बल (सेना) और मित्रवर्ग, इन सात को राज्य कहा जाता था और जनपद अर्थात्--राज्य के एक देश को राष्ट्र, किन्तु वर्तमान काल की भौगोलिक व्यवस्था के अनुसार प्रत्येक प्रान्त को राज्य (State) कहा जाता है, और कई प्रान्त मिल कर एक राष्ट्र होता है / कई जिले मिल कर एक प्रान्त होता है / 1. भगवती. अ. बत्ति, पब 691 2. (क) भगवती. अ. बृत्ति, पत्र 691 / / (ख) भगवती. (हिन्दी विवेचन) भा. 5, पृ. 2476 से 2586 3. भगवती. अ. वत्ति, पत्र 692 स्वाम्यमात्यश्च राष्ट्र च कोशो दुर्ग बलं सुहृत सप्तांगमुच्यते राज्यं बुद्धिसत्त्वसमाश्रयम् // राष्ट्र जनपदैकदेश: / ' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org