________________ [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [13 प्र.] भगवन् ! वह देव, पहले शस्त्र का आक्रमण करके पोछे जाता है, अथवा पहले जा कर तत्पश्चात् शस्त्र से अाक्रमण करता है ? [13 उ.| गौतम ! पहले. शस्त्र का प्रहार करके फिर जाता है, किन्तु पहले जा कर फिर शस्त्र-प्रहार करता है. ऐसा नहीं होता। इस प्रकार इस अभिलाप द्वारा दशवें शतक के (तीसरे) 'आइड्डिय' उद्देशक (सू. 6 से 17 तक) के अनुसार समग्र रूप से चारों दण्डक; यावत् महाऋद्धि वाली वैमानिक देवी, अल्प ऋद्धि वाली वैमानिक देवी के मध्य में से होकर जा (निकल) सकती है, (यहाँ तक) कहना चाहिए / विवेचन-चार दण्डक, तीन पालापक और निष्कर्ष प्रस्तुत चार सूत्रों (सू. 10 से 13 तक) में चार दण्डकों में प्रत्येक में तीन-तीन पालापक कहे गए हैं / चार दण्डक ये हैं—(१) देव और देव, (2) देव और देवी, (3) देवी और देव और (4) देवी और देवी।' इन चारों दण्डकों के प्रत्येक के तीन पालापक यों हैं-(१) अल्पद्धिक और महद्धिक, प्रथम पालापक, (2) समद्धिक और असमद्धिक, द्वितीय आलापक तथा (3) महद्धिक और अल्पद्धिक तृतीय पालापक; जो मूलपाठ में साक्षात् नहीं कहा गया है, उसके लिए दशवें शतक का अतिदेश किया गया है / द्वितीय अलापक के अन्त में सूत्रांश इस प्रकार कहना चाहिए-"पहले शस्त्र द्वारा आक्रमण करके पीछे जाता है, किन्तु पहले जाकर बाद में शस्त्र द्वारा अाक्रमण नहीं करता।" तृतीय आलापक का कथन इस प्रकार --- [प्र.] भगवन् ! महद्धिक देव, अल्पद्धिक देव के मध्य में हो कर जा सकता है ? [उ.] हाँ, गौतम ! जा सकता है / [प्र.] भगवन् ! महद्धिक देव, शस्त्राक्रमण करके जा सकता है या शस्त्राक्रमण किये बिना ही जा सकता है ? उ.] गौतम ! शस्त्राक्रमण करके भी जा सकता है और शस्त्राक्रमण किये बिना भी जा जा सकता है / प्र.] भगवन् ! पहले शस्त्राक्रमण करके पीछे जाता है या पहले जा कर बाद में शस्त्राक्रमण करता है ? [उ.] गौतम ! वह पहले शस्त्राक्रमण करके पीछे भी जा सकता है अथवा पहले जा कर बाद में भी शस्त्राक्रमण कर सकता है / 1. भगवती. अ. वत्ति, पत्र 637 2. (क) वही, अ. वृत्ति, पत्र 637 (ख) भगवती. श. 10, उ. 3, सूत्र. 6-17 (ग) द्वितीयालापक का सूत्रशेष--'गोयमा ! पुस्विं सत्येणं अक्कमिता वोईवएज्जा, नो पुटिव वीईवइत्ता पच्छा सत्थेणं अवकमिज्जा ।'–भगवती. 1. 10, उ.३ म्.६-१७ (घ) तृतीय महद्धिक-अल्पद्धिक-आलापक----'महडिता णं भते ! देवे अप्पढियस्म देवस्स मज्भमजण बीईवएज्जा?" हंता, बीईवएज्जा / ‘से णं भते ! कि सत्श्रेणं अपकमित्ता पभू अणक्कमित्ता पभ् ?' 'गोयमा ! अस्कमित्ता वि पभ्, अशक्कमित्ता वि पभू / 'से गं भंते ! कि पुदि मत्थेणं अक्कमित्ता पच्छा वीडबाजा, पुब्बि बीइवाएज्जा, पच्छा सत्येणं अक्क मेज्जा ?' 'गोयमा / पूवि वा सत्थेण अक्कमिना पच्छा वी इवएज्जा, पून्धि वा बीइवइत्ता पच्छा सत्श्रेणं अक्कमिज्जा / ' ---भगवती. श. 10 उ.३, मु. 6.17 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org