________________ 506] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र मार्जार नामक वायु को शान्त करने वाला बिजौरापाक, जो कल का बनाया हुआ है, वह मुझे दो, उसी से प्रयोजन है।' 124. तए णं सा रेवती गाहावतिणी सीहं प्रणगारं एवं वदासि-केस णं सोहा ! से पाणी वा तवस्सी वा जेणं तव एस अट्ठ मम आतरहस्सकडे हट्वमक्खाए जतो णं तुमं जाणासि ? एवं जहा खंदए (स० 2 उ०१ सु० 20 [2]) जाव जतो णं अहं जाणामि / 124] इस पर रेवती गाथापत्नी ने सिंह अनगार से कहा हे सिंह अनगार ! ऐसे कौन ज्ञानी अथवा तपस्वी हैं, जिन्होंने मेरे अन्तर की यह रहस्यमय बात जान ली और आप से कह दी, जिससे कि आप यह जानते हैं ?' सिंह अनगार से (शतक 2 उ. 1 सू. 20/2 में उक्त) स्कन्दक के वर्णन के समान (कहा---.) यावत्-'भगवान् के कहने से मैं जानता हूँ।' 125. तए णं सा रेवती गाहावतिणी सीहस्स अणगारस्स अंतियं एतम? सोच्चा निसम्म हट्टतुटु० जेणेव भत्तघरे तेणेव उवागच्छइ, उवा० 2 पत्तं मोएति, पत्तं मो०२ जेणेव सोहे अणगारे तेणेव उवागच्छति, उवा० 2 सीहस्स अणगारस्स पडिग्गहगंसि तं सत्वं सम्म निसिरति / {125] तब सिंह अनगार से यह बात सुन कर एवं अवधारण करके वह रेवती गाथापत्नी हर्षित एवं सन्तुष्ट हुई। फिर जहाँ रसोईघर था, वहाँ गई और (बिजौरापाक वाला) बर्तन खोला। फिर उस बर्तन को लेकर सिंह अनगार के पास आई और सिंह अनगार के पात्र में वह सारा पाक सम्यक् प्रकार से डाल (बहरा) दिया। 126. तए णं तीए रेवतीए गाहावतिणीए तेणं दव्यमुद्धणं जाव दाणेणं सोहे अणगारे पडिलाभिए समाणे देवाउए निबद्ध जहा विजयम्स (मु० 26) जाव जम्मजीवियफले रेवतीए गाहावतिणीए, रेवतीए गाहावतिणीए। [126] रेवती गाथापत्नी ने उस द्रव्यशुद्धि, दाता की शुद्धि एवं पात्र (ग्रादाता) की शुद्धि से युक्त, यावत्-प्रशस्त भावों से दिये गए दान से सिंह अनगार को प्रतिलाभित करने से देवायु का बन्ध किया / यावत् इसी शतक में कथित विजय गाथापति के समान रेवती के लिए भी ऐसी उद्घोषणा हुई— रेवती गाथापत्नी ने जन्म और जीवन का सुफल प्राप्त किया, रेवती गाथापत्नी ने जन्म और जीवन सफल कर लिया।' 127. तए णं से सीहे अणगारे रेवतीए गाहावतिणीए गिहाओ पडिनिवखमति, पडि०२ में ढियग्गामं नगरं मझमज्नेणं निग्गच्छति, नि०२ जहा गोयमसामी (स०२ उ० 5 सु० 25 [1]) जाव भत्तपाणं पडिदसेति, भ० 102 समणस्स भगवतो महावीरस्स पाणिसि तं सव्वं सम्म निसिरति / [127] इसके पश्चात् वे सिंह अनगार, रेवती गाथापत्नी के घर से निकले और में ढिकग्राम नगर के मध्य में से होते हुए भगवान् के पास पहुँचे और (श. 2 उ. 5 सू. 25-1 में कथितानुसार) गौतमस्वामी के समान यावत् (लाया हुआ) आहारपानी दिखाया। फिर वह सब श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के हाथ में सम्यक् प्रकार से रख (दे) दिया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org