________________ पन्द्रहवां शतक] [513 जाब अहियासियं, तं नो खलु अहं तहा सम्म सहिस्सं जाव अहियासिस्स, अहं ते नवरं सहयं सरह ससारहीयं तवेणं तेयेणं एगाहच्चं कूडाहच्चं भासरासि करेज्जामि'।" "तए णं से विमलवाहणे राया सुमंगलेणं अणगारेणं एवं वृत्ते समाणे आसुरुत्ते जाव मिसिमिसेमाणे सुमंगलं अणगारं तच्चं पि रहसिरेणं णोल्लावेहिति / " "तए में से सुमंगले अणगारे विमलवाहणेणं रण्णा तच्चं पि रहसिरेणं नोल्लाविए समाणे आसुरुत्ते जाव मिसिमिसेमाणे आयावणभूमीओ पच्चोरहति, आ० प० 2 तेयासमुग्धातेणं समोहनिहिति, तेया० स० 2 सत्तटुपयाई पच्चोसक्किहिति, सत्तट्ठ० पच्चो० 2 विमलवाहणं रायं सहयं ससारहीयं तवेणं तेयेणं जाव भासरासि करेहिति / " [132 प्र. भगवन् ! वह गोशालक देव उस देवलोक से आयुष्य, भव और स्थिति का क्षय होने पर, देवलोक से च्यव कर यावत् कहाँ उत्पन्न होगा ? 132 उ.] गौतम ! इसी जम्बूद्वीप नामक द्वीप के (अन्तर्गत) भारतवर्ष (भरतक्षेत्र) में विन्ध्यपर्वत के पादमूल (तलहटी) में, पूण्ड जनपद के शतद्वार नामक नगर में सन्मूर्ति नाम के राजा की भद्रा-भार्या की कुक्षि में पूत्ररूप से उत्पन्न होगा। वह वहाँ नौ महीने और साढ़े सात रात्रिदिवस यावत् भलीभांति व्यतीत होने पर यावत् सुन्दर (रूपवान्) बालक के रूप में जन्म लेगा / जिस रात्रि में उस बालक का जन्म होगा, उस रात्रि में शतद्वार नगर के भीतर और बाहर, अनेक भार-प्रमाण और अनेक कुम्भप्रमाण पद्मों (कमलों) एवं रत्नों की वर्षा होगी। तब उस बालक के माता-पिता ग्यारह दिन बीत जाने पर बारहवें दिन उस बालक का गुणयुक्त एवं गूणनिष्पन्न नामकरण करेंगे-- क्योंकि हमारे इस बालक का जब जन्म हुमा, तब शतद्वार नगर के भीतर और बाहर यावत् पद्मों और रत्नों की वर्षा हुई थी, इसलिए हमारे इस बालक का नाम–'महापद्म हो। तदनन्तर ऐसा विचार कर उस बालक के माता-पिता उसका नाम रखेंगे--'महापद्म' / तत्पश्चात उस महापदम बालक के माता-पिता उसे कुछ अधिक आठ वर्ष का जान कर शुभ तिथि, करण, दिवस, नक्षत्र और मुहर्त में बहुत बड़े (या बड़े धूमधाम से) राज्याभिषेक से अभिषिक्त करेंगे / इस प्रकार वह (महापद्म) वहाँ का राजा बन जाएगा / औपपातिक में वर्णित राज-वर्णन के समान इसका वर्णन जान लेना चाहिए—वह महाहिमवान् आदि पर्वत के समान महान् एवं बलशाली होगा, यावत् वह (राज्यभोग करता हुप्रा) विचरेगा। किसी समय दो मद्धिक यावत् महासौख्य सम्पन्न देव उस महापद्म राजा का सेनापतित्व करेंगे। वे दो देव इस प्रकार हैं-पूर्णभद्र और माणिभद्र / यह देख कर शतद्वार नगर के बहुत-से राजेश्वर (मण्डलपति), तलवर, राजा, युवराज यावत् सार्थवाह आदि परस्पर एक दूसरे को बुलायेंगे और कहेंगे—देवानुप्रियो ! हमारे महापद्म राजा के महद्धिक यावत् महासौख्यशाली दो देव सेनाकर्म करते हैं। इसलिए (हमारी सम्मति है कि) देवानुप्रियो ! हमारे महापद्म राजा का दूसरा नाम-देवसेन या देवसैन्य हो। तब उस महापद्म राजा का दूसरा नाम 'देवसेन' या 'देवसैन्य' भी होगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org