________________ 404] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र संस्थानतुल्यनिरूपण 10. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ 'संठाणतुल्लए, संठाणतुल्लए' ? गोयमा! परिमंडले संठाणे परिमंडलस्स संठाणस्स संठाणओ तुल्ले, परिमंडले संठाणे परिमंडलसंठाणवतिरित्तस्स संठाणस्स संठाणओ नो तुल्ले / एवं वट्टे तसे चउरंसे आयए / समचउरंससंठाणे समचउरंसस्स संठाणस्स संठाणओ तुल्ले, समचउरंसे संठाणे समचउरंससंठाणवतिरित्तस्स संठाणस्स संठाणनो नो तुल्ले / एवं परिमंडले वि / एवं जाव हुंडे / से तेणठेणं जाव संठाणतुल्लए, संठाणतुल्लए। [10 प्र. भगवन् ! 'संस्थानतुल्य' को 'संस्थानतुल्य' क्यों कहा जाता है ? [10 उ.] गौतम ! परिमण्डल-संस्थान, अन्य परिमण्डल-संस्थान के साथ संस्थानतुल्य है, किन्तु दूसरे संस्थानों के साथ संस्थान से तुल्य नहीं है। इसी प्रकार वत्त संस्थान, न्यस्त्र-संस्थान, चतुरस्रसंस्थान एवं प्रायतसंस्थान के विषय में भी कहना चाहिए। एक समचतुरस्रसंस्थान अन्य समचतुरस्त्रसंस्थान के साथ संस्थान-तुल्य है, परन्तु समचतुरस्र के अतिरिक्त दूसरे संस्थानों के साथ संस्थान-तुल्य नहीं है। इसी प्रकार न्यग्रोध-परिमण्डल यावत् हुण्डकसंस्थान तक कहना चाहिए / इसी कारण से, हे गौतम ! 'संस्थान-तुल्य' संस्थान-तुल्य कहलाता है / विवेचन-संस्थान : परिभाषा, प्रकार एवं भेदप्रभेद—प्राकृति विशेष को संस्थान कहते हैं। वह दो प्रकार का है--अजीवसंस्थान और जीवसंस्थान / अजीवसंस्थान के 5 भेद हैं—परिमण्डल, वृत्त, त्यत्र, चतुरस्र और प्रायत / (1) परिमण्डल---जो चूड़ी के समान गोल हो / इसके दो भेद हैं-धन और प्रतर / (2) वृत्त—जो कुम्हार के चाक के समान बाहर से गोल और भीतर से पोलान-रहित हो / इसके दो भेद हैं-घन और प्रतर / इसके भी दो-दो भेद होते हैं—-समसंख्या वाले प्रदेशों से युक्त और विषम संख्या वाले प्रदेशों से युक्त ! (3) व्यर-त्रिकोणाकार / (4) चतुरस्र - चौकोर / (5) आयत--जो दण्ड के समान लम्बा हो। इसके तीन भेद हैं - श्रेण्यायत, प्रतरायत और धनायत / इनके प्रत्येक के दो-दो भेद हैं-समसंख्या वाले प्रदेशों से युक्त और विषमसंख्या वाले प्रदेशों से युक्त / ' जीवसंस्थान के छह भेद, लक्षण संस्थान नामकर्म के उदय से सम्पाद्य जीवों की प्राकृतिविशेष को जीव-संस्थान कहते हैं। इसके 6 भेद ये हैं-(१) समचतुरस्र, (2) न्यग्रोध-परिमण्डल, (3) सादिसंस्थान, (4) कुब्जकसंस्थान, (5) वामनसंस्थान और (6) हुण्डकसंस्थान / (1) समचतुरस्त्र-सम-समान, चतुरस्त्र-चारों कोण / पल्हथी मार कर बैठने पर जिस शरीर के चारों कोण समान हों / अर्थात् प्रासन और कपाल का अन्तर, दोनों घुटनों का अन्तर, बाँए कन्धे और दाहिने घुटने का अन्तर तथा दाहिने कन्धे और बाँए घुटने का अन्तर समान हो, उसे समचतुरस्त्रसंस्थान कहते हैं। अथवा--सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार जिस शरीर के समग्र अवयव ठीक प्रमाण वाले हों, उसे समचतुरस्रसंस्थान कहते हैं / 1. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 649 (ख) भगवती. (हिन्दीविवेचन) भा. 5, पृ. 2335 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org