________________ पन्द्रहवां शतक] [487 हप्रा. गोशालक की दुर्दशा-निमित्तक विविध चेष्टाएँ 86. तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते जस्सट्टाए हव्वमागए तमळं असाहेमाणे, रुदाई पलोएमाणे, दीहुण्हाइं नीससमाणे, दाढियाए लोमाई लुचमाणे, अवर्ल्ड कंडूयमाणे, पुर्याल पप्फोडेमाणे, हत्थे विणिधुणमाणे, दोहि वि पाएहिं भूमि कोटेमाणे 'हाहा अहो ! हओऽहमस्सी ति कट्ट समणस्त भगवतो महावीररस अंतियात्रो कोट्टयाओ चेतियाश्रो पडिनिवखमति, पडि० 2 जेणेव सावत्थी नगरी जेणेव हालाहलाए कुभकारीए कुभकारावणे तेणेव उवागाछति, ते० उ० 2 हालाहलाए कुभकारीए कुंभकारावणंसि अंब कणगहत्थगए मज्जपाणगं पियमाणे अभिवखणं गायमाणे अभिक्खणं नच्चमाणे प्रभिदखणं हालाहलाए कुभकारीए अंजलिकामं करेमाणे सीयलएणं मट्टियापाणएणं आयंचणिउदएणं गायाई परिसिचेमाणे विहरइ। [86] मंलिपुत्र गोशालक जिस कार्य को सिद्ध करने के लिए एकदम पाया था, उस कार्य को सिद्ध नहीं कर सका, तब वह (हताश हो कर) चारों दिशाओं में लम्बी दृष्टि फैकता हया, दीर्घ और उष्ण निःश्वास छोड़ता हुआ, दाढ़ी के बालों को नोचता हुआ, गर्दन के पीछे के भाग को कता हुआ, हाथों को हिलाता हुया और दोनों पैरों से भूमि को पीटता हुआ; 'हाय, हाय ! ओह मैं मारा गया' यों बड़बड़ाता हुआ, श्रमण भगवान् महावीर के पास से, कोष्ठक-उद्यान से निकला और श्रावस्ती नगरी में जहाँ हालाहला कुम्भकारी की दुकान थी, वहाँ आया। वहाँ अाम्रफल हाथ में लिए हुए मद्यपान करता हुआ, (मद्य के नशे में) बार-बार गाता और नाचता हुअा, बारबार हालाहला कुम्भारिन को अंजलिकर्म (हाथ जोड़ कर प्रणाम) करता हुआ, मिट्टी के बर्तन में रखे हुए मिट्टी मिले हुए शीतल जल (प्रातञ्चनिकोदक) से अपने शरीर का परिसिंचन करता हुआ (शरीर पर छांटता हुमा) विचरने लगा। विवेचन—प्रस्तुत सूत्र (86) में पराजित, अपमानित तेजोलेश्या से दाध एवं हताश गोशालक की तीन प्रकार की कुचेष्टानों का वर्णन है, जो उसकी दुर्दशा की सूचक हैं (1) पराजित और तेजोलेश्या हित होने के कारण दीर्घ निःश्वास, दाढी के बाल नोचना, गर्दन के पृष्ठ भाग को खुजलाना, भूमि पर पैर पटकना आदि चेष्टाएँ गोशालक द्वारा की गई। (2) अपमान, पराजय और अपयश को भुलाने के लिए गोशालक ने मद्यपान, और उसके नशे में हो कर गाना, नाचना, हालाहला को हाथ जोड़ना आदि चेष्टाएँ अपनाईं। (3) तेजोलेश्याजनित दाह को शान्त करने के लिए गोशालक ने चूसने के लिए हाथ में आम्रफल (ग्राम की गुठली) ली / तथा कुम्भार के यहाँ मिट्टी के घड़े में रखा हुअा व मिट्टी मिला हुप्रा ठंडा जल शरीर पर सींचने (छिड़कने) लगा।' कठिन-शब्दार्थ हव्वमागए-जल्दी-जल्दी पाया था। असाहेमाणे नहीं साधे जाने पर / रुदाई फ्लोएमाडे-दिशाओं की ओर दीर्घ दृष्टिपात करता हुआ। दोहण्हं नीससमाणे दीर्घ और 1. (क) वियाहपग्णत्तिसुत्तं (मू. पा. टि.) भा. 2 पृ. 720 (ख) भगवती. अ. वृत्ति, प. 684 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org