________________ 454] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र विवेचन--प्रस्तुत पांच सूत्रों (सू. 48 से 52 तक) में गोशालक द्वारा वैश्यायन बालतपस्वी को चिढ़ा कर छेड़छाड़ करने का, वैश्यायन द्वारा क्रुद्ध होकर गोशालक पर तेजोलेश्या के प्रहार करने का, भगवान् द्वारा गोशालक के प्राण रक्षार्थ शोत-तेजोलेश्या का प्रतिघात करने का एवं यह देख कर वैश्यायन द्वारा भी अपनो उष्ण तेजोलेश्या वापस खोंच लेने का; इस प्रकार चार क्रमों में यह वत्तान्त अंकित किया गया है। कठिनशब्दार्थ---सद्धि-साथ / उड्ढं बाहाओ पगिज्झिय-दोनों भुजाएँ ऊँची रख कर / आयावणभूमीए---अातापना भूमि में / आइच्च-तेयतवियाओ-प्रादित्य---सूर्य के तेज-ताप से तपी हुई। छप्पईप्रो-षट्पदी जुएँ / पडियाओ-पड़ो-गिरी हुई। सणियं सणियं-शनैः शनैः / भवं-आप / मुणिए-तत्वज्ञ अथवा तपस्वी। जुया-सेज्जायरए-जुओं के शय्यातर (जुओं के घर के स्वामी)। आसुरुत्ते-कुषित हुआ। मिसिमिसेमाणे-मिमिसाहट करते (क्रोध से दांत पीसते) हुए। तेया-समुग्धाएग-तेजस-समुद्घात / वहाए-वध के लिए / तेयं तेजोलेश्या / पडिसाहरणट्ठयाएपीछे हटाने-प्रतिहत करने के लिए / उसिणा-उष्ण / साउसिणं-स्वकीय उष्ण / तेयलेस्सं तेजो. लेश्या को / अकीरमाणं-नहीं करता हुआ / साअं-अपनो / गतमेयं--(मैंने) जान लिया / भगवान द्वारा गोशालक पर तेजोलेश्याप्रहार के शमन का वृत्तान्त तथा गोशालक को तेजोलेश्याविधि का कथन 53. तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते ममं एवं बयासी-कि णं भंते ! एस जयासेज्जायरए तुम्भे एवं वदासी-'से गयमेतं भगवं! गयमेतं भगवं !' ? तए णं अहं गोयमा! गोसालं मंखलिपुतं एवं वदामि-"तुम णं गोसाला ! वेसियायणं बालतवस्सि पाससि, पा० 2 ममं अंतियातो सणियं सणियं पच्चोसक्कसि, 102 जेणेव वेसियायणे बालतवस्सी तेणेव उवागच्छसि, ते० उ०२ वेसियायणं बालतस्सि एवं वयासी-किं भवं मुणी मुणिए ? उदाहु जयासेज्जायरए ? तए णं से वेसियायणे बालतवस्तो तव एयमटुंनो आढाति, नो परिजाणति, तुसिणोए संचिट्ठति / तए णं तुम गोसाला! वेसियायणं बालतस्सि दोच्च पि तच्चं पि एवं वयासी-कि भवं मुणी जाव सेज्जायरए ? तए णं से वेसियायणे बालतवस्सी तुम (?मे) दोच्चं पि तच्चं पि एवं वुत्ते समाणे आसुरुत्ते जाव पच्चोसक्कति. प० 2 तव वहाए सरीरगंसि तेयं निसिरति / तए णं अहं गोसाला! तव अणुकंपणढताए वेसियायणस्स बालतवस्सिस्स उसिणतेयपडिसाहरणट्टयाए एत्थ णं अंतरा सीयलियं तेयलेम्स निसिरामि जाव पडिहयं जाणित्ता तव य सरीरगस्स किंचि आवाहं बा बाबाहं वा छविच्छेदं वा अकीरमाणं पासित्ता सायं उसिणं तेयलेस्सं पडिसाहरति, सायं०५०२ ममं एवं वयासो-से गयमेयं भगवं!, गयमेयं भगवं !" / 1. वियाहपण्णत्तिसुतं भा. 2 (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त), पृ. 700-701 2. (क) भगवतो. अ. वृत्ति, पत्र 668 (ख) भगवती. (हिन्दीविवेचन) भा. 5, पृ. 2392-2393 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org