________________ [লাভবাসকাদি 'इसी प्रकार, हे अानन्द ! तुम्हारे धर्माचार्य, धर्मोपदेशक श्रमण ज्ञातपुत्र ने उदार (प्रधान) पर्याय, प्राप्त की है। देवों, मनुष्यों और असुरों सहित इस लोक में श्रमण भगवान् महावीर', 'श्रमण भगवान् महावीर', इस रूप में उनको उदार कोति, वर्ण, शब्द और श्लोक (श्लाघा, या धन्यवाद) फैल रहे हैं, मुंजायमान हो रहे हैं, स्तुति के विषय बन रहे हैं / (सर्वत्र उनको प्रशंसा या स्तुति हो रही है।) इससे अधिक की लालसा करके यदि वे अाज से मुझे (या मेरे विषय में) कुछ भी कहेंगे, तो जिस प्रकार उस सर्पराज ने एक ही प्रहार से उन वणिकों को कूटाघात के समान जला कर भस्मराशि कर डाला, उसी प्रकार मैं भी अपने तप और तेज से एक ही प्रहार में उन्हें भस्मराशि (राख का ढेर) कर डालंगा / जिस प्रकार उन वणिकों के हितकामी यावत् निःश्रेयसकामी वणिक पर उस नागदेवता ने अनुकम्पा की और उसे भण्डोपकरण सहित अपने नगर में पहुँचा दिया था, उसी प्रकार सरक्षण पोर संगोपन करूंगा। इसलिए, हे प्रानन्द ! तुम जानो और अपने धर्माचार्य धर्मोपदेशक श्रमण ज्ञातपुत्र को यह बात कह दो।' विवेचन-गोशालक की धमकी-प्रस्तुत चार सूत्रों (सू. 62 से 65) में भगवान महावीर को धमकी देने के लिए उनके शिष्य आनन्द स्थविर को गोशालक द्वारा कहे गए एक उपमा-दृष्टान्त का निरूपण है। दृष्टान्तसार-अर्थलुब्ध कुछ वणिक धन की खोज में अपनी गाड़ियों में बहुत-सा माल भर कर निकले / उन्होंने साथ में भोजन-पानी भी ले लिया था। किन्तु ज्यों ही वे एक भयंकर अटवी में कुछ दूर तक गये कि साथ लिया हुआ पानी समाप्त हो गया। वे सब पानी की खोज में चले / उन्हें कुछ दूर जाने पर एक बांबी मिली / उसके ऊँचे उठे हुए चार शिखर थे। सब वणिकों ने उसके प्रथम शिखर को तोड़ने का निश्चय किया / तोड़ा तो उसमें से स्वच्छ जल निकला। सबने प्यास बुझाई / साथ में पानी भर लिया। फिर दूसरे शिखर को तोड़ने का निश्चय करके उसे तोड़ा तो उसमें से शुद्ध सोना निकला / सबने उसे बर्तनों और गाड़ियों में भर लिया। फिर उन्होंने तीसरे शिखर को तोड़ने का निश्चय करके उसे भी तोड़ा तो उत्तम मणिरत्न निकले / सबने बर्तनों और गाड़ियों में भर लिये / अब उन्होंने लोभवश चौथे शिखर को भी तोड़ने का निश्चय किया। किन्तु उनमें से एक हितैषी ने उन सबको तोड़ने से रोका, कहा-इसे तोड़ने से उपद्रव होगा, किन्तु उसकी र उन्होंने चौथे शिखर को तोडा तो उसमें से एक भयंकर दष्टिविष सर्प निकला। उसने उन सबको माल-सामान सहित भस्म कर डाला, किन्तु उस हितैषी वणिक् पर अनुकम्पा करके उसे माल-सहित अपने नगर में पहुंचा दिया / गोशालक ने इस दृष्टान्त को भगवान् महावीर पर इस प्रकार घटित किया कि ज्ञातपुत्र श्रमण ने अब तक बहुत यशकीति, प्रसिद्धि, प्रशंसा आदि अजित कर ली है। अब लोभवश यदि वह अधिक प्रसिद्धि प्रादि प्राप्त करने के लिए मेरे विषय में कुछ भी बोलेंगे तो मैं भी उस सर्प की तरह उन्हें भस्म कर दूंगा। केवल तुम्हारी सुरक्षा करूगा / यह बात तुम अपने धर्माचार्य ज्ञातपुत्र श्रमण से कह दो / ' कठिनशब्दों के विशेषार्थ-महं ओमियं : दो अर्थ--(१) मेरे से सम्बन्धित उपमा-दृष्टान्त, या (2) महान -विशिष्ट उपमा--दष्टान्त / चिरातीताए अद्धाए-बहुत प्राचीन काल उच्चावया-उत्तम (विशिष्ट) और अनुत्तम (साधारण)। अस्थकंखिया प्राप्त अर्थ में निरन्तर 1. विवाहपत्तिमुत्तं भा. 2 (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त), पृ. 705 से 709 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org