________________ 448] (সদিন 39. तए णं से बहुले माहणे मम एज्जमाणं तहेब जाव ममं विउलेणं महु-घयसंजुत्तेणं परमम्मेणं 'पडिलाभेस्सामी' ति तुढे / सेसं जहा विजयस्स जाव बहुलस्त माहणस्स, बहुलस्स माहणस्स। [36] उस समय बहुल ब्राह्मण ने मुझे आते देखा; इत्यादि समग्र वर्णन पूर्ववत् यावत्-'मैं (आज भ. महावीर स्वामी को) मधु (खांड) और घी से संयुक्त परमान्न से प्रतिलाभित करूंगा; ऐसा विचार कर वह (बहुल ब्राह्मण) सन्तुष्ट हुआ। शेष सब वर्णन विजय गाथापति के समान यावत्'बहुल ब्राह्मण का मनुष्य जन्म और जीवनफल प्रशंसनीय है', (यहाँ तक कहना चाहिए / ) 40. तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते ममं तंतुवायसालाए प्रपासमाणे रायगिहे नगरे सम्भंतरबाहिरिए ममं सवओ समंता मग्गणगवेसणं करेइ / ममं कत्थति सुति वा खुति वा पत्ति का अलभमाणे जेणेव तंतुवायसाला तेणेव उवागच्छति, उवा० 2 साडियाओ य पाडियाओ य कुडियानो य पाहणाओ य चित्तफलगं च माहणे आयामेति, आ० 2 सउत्तरोठं मुडं कारेति, स० का०२ तंतुवायसालानो पडिनिक्खमति, तं० 50 2 णालंदं बाहिरियं मज्झमझेणं निग्गच्छति, नि० 2 जेणेव कोल्लागसनिवेसे तेणेव उवागच्छद / [40] उस समय मंखलिपुत्र गोशालक ने मुझे तन्तुवायशाला में नहीं देखा तो, राजगृह नगर के बाहर और भीतर सब ओर मेरो खोज की; परन्तु कहीं भी मेरी श्रुति (आवाज), क्षति (छोंक) और प्रवृत्ति न पा कर पुनः तन्तुबायशाला में लौट गया। वहाँ उसने शाटिकाएँ (अन्दर पहनने के वस्त्र), पाटिकाएँ (उत्तरीय-ऊपर पहनने के वस्त्र), कुण्डिकाएँ (भोजनादि के बर्तन), उपानत् (पारखी) एवं चित्रपट (चित्रांकित फलक) आदि ब्राह्मणों को दे दिये। फिर (मस्तक से लेकर) दाढी-मूछ (उत्तरोष्ठ) सहित मुडन करवाया / - इसके पश्चात् वह तन्तुवायशाला से बाहर निकला और नालन्दा से बाहरी भाग के मध्य में से चलता हुमा कोल्लाकसन्निवेश में आया / 41. तए णं तस्स कोल्लागस्स सन्निवेसस्स बहिया बहुजणो अन्नमन्नस्स एवमाइक्खति जाव पस्वेति-धन्ने णं देवाणुप्पिया ! बहुले माहणे, तं चेव जाव जीवियफले बहुलस्स माहणस्स, बहुलस्स माहणस्स। [41] उस समय उस कोल्लाक निवेश के बाहर बहुत-से लोग परस्पर एक दूसरे से इस प्रकार कह रहे थे, यावत् प्ररूपणा कर रहे थे—'देवानुप्रियो / धन्य है बहुल ब्राह्मण !' इत्यादि कथन पूर्ववत्, यावत्-बहुल ब्राह्मण का मानवजन्म और जीवनरूप फल प्रशंसनीय है; (यहाँ तक जानना चाहिए। 42. तण णं तस्स गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स बहुजणस्स अंतियं एयमळं सोच्चा निसम्म प्रयमेयारूवे अज्झथिए जाव समुप्पज्जित्था जारिसिया णं ममं धम्मायरियस्स धम्मोबदेसगस्स समणस्स भगवतो महावीरस्स इड्डो जुती जसे बले वोरिए पुरिसक्कारपरक्कमे लद्ध पत्ते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org