________________ 'पन्द्रहवां शतक] [441 वसति में चारों ओर सर्वत्र अपने निवास के लिए स्थान की खोज करने लगा / सर्वत्र पूछताछ और गवेषणा करने पर भी जब कोई निवासयोग्य स्थान नहीं मिला तो उसने उसी गोबहुल ब्राह्मण की गोशाला के एक भाग में वर्षावास (चातुर्मास) बिताने के लिए निवास किया / 18. तए णं सा भद्दा भारिया नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अट्ठमाण य रातिदियाणं वोतिक्कताणं सुकुमाल जाव पडिरूवं दारगं पयाता / [18] तदनन्तर (वहाँ रहते हुए) उस भद्रा भार्या ने पूरे नौ मास और साढ़े सात रात्रि. दिन व्यतीत होने पर एक सुकुमाल हाथ-पैर वाले यावत् सुरूप पुत्र को जन्म दिया / 19. तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो एक्कारसमे दिवसे वोतिक्कते जाव बारसाहदिवसे अयमेतारूवं गोणं गुणनिष्फन्नं नामधेज्जं करेंति--जम्हा णं अम्हं इमे दारए गोबहुलस्स माहणस्स गोसालाए जाए तं होउणं अम्हं इमस्स दारगस्स नामधेन्ज गोसाले, गोसाले' ति। तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो नामधेज्ज करेंति 'गोसाले' त्ति / [16] तत्पश्चात् ग्यारहवाँ दिन बीत जाने पर यावत् बारहवें दिन उस बालक के मातापिता ने इस प्रकार का गौण (गुणयुक्त), गुणनिष्पन्न नामकरण किया कि हमारा यह बालक गोब हुल ब्राह्मण की गोशाला में जन्मा है। इसलिए हमारे इस बालक का नाम गोशालक हो और तभी उस बालक के माता-पिता ने उस बालक का नाम 'गोशालक' रखा / विवेचन---प्रस्तुत पांच सूत्रों (सू. 15 से 16 तक) में गोशालक के जन्मस्थान, जन्म और नामकरण का वृत्तान्त प्रस्तुत किया गया है- (1) शरवण सन्निवेश में वेदादि निपुण गोबहुल ब्राह्मण की गोशाला थी। (2) गोशालक का पिता मंखली अपनी गर्भवती पत्नी भद्रा को लेकर शरवण सत्रिवेश में गोबहल की गोशाला में पाया। भिक्षाटन के समय उसने सारा गाँव छान मारा, किन्तु उसे अन्य कोई निवासयोग्य स्थान न मिला अतः वहीं वर्षावास बिताने हेतु पड़ाव डाला। (3) उसी गोशाला में भद्रा ने एक बालक को जन्म दिया। (4) 12 वें दिन माता-पिता ने उस बालक का गुणनिष्पन्न गोशालक नाम रक्खा / ' यौवनवयप्राप्त गोशालक द्वारा स्वयं मंखवृत्ति 20. तए गं से गोसाले दारए उम्मुक्कबालभावे विण्णायपरिणतमेत्ते जोवणगमणुप्पत्ते सयमेव पाडिएक्कं चित्तफलगं करेति, सय० क० 2 चित्तफलगहत्थगए मंखत्तणेणं अप्पाणं भावेमाणे विहरति / [20] तदन्तर वह बालक गोशालक बाल्यावस्था को पार करके एवं विज्ञान से परिपक्व बुद्धि वाला होकर यौवन अवस्था को प्राप्त हुआ। तब उसने स्वयं व्यक्तिगत (स्वतन्त्र) रूप से चित्रफलक तैयार किया / व्यक्तिगत रूप से तैयार किये हुए चित्रफलक को स्वयं हाथ में लेकर मंखवृत्ति से प्रात्मा को भावित करता हुआ विचरण करने लगा। विवेचन–प्रस्तुत 20 वें सूत्र में युवक गोशालक द्वारा स्वतन्त्र रूप से चित्रपट लेकर मंखवृत्ति करने का वर्णन है। 1. वियाहपण त्तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त) भा. 2, पृ. 692 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org