________________ 318] व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र उवधातिए जाब पज्जुवासति / पभावतीपामोक्खाओ देवीओ तहेव जाव पज्जुवासंति / धम्मकहा। [21] उस समय (श्रमण भगवान महावीर स्वामी के पदार्पण की) बात को सुन कर उदायन राजा हर्षित एवं सन्तुष्ट हुआ। उसने कौटुम्बिक पुरुषों (सेवकों) को बुलाया और उनसे इस प्रकार कहा— 'देवानुप्रियो ! तुम शीघ्र ही वीतिभय नगर को भीतर और बाहर से स्वच्छ करवानो, इत्यादि, प्रौपपातिकसत्र में जैसे कणिक का वर्णन है, तदनसार यहाँ भी यावत-उदायन राजा भगवान पर्युपासना करता है; (यहाँ तक वर्णन करना चाहिए / ) प्रभावती-प्रमुख रानियाँ भी उसी प्रकार यावत् पर्युपासना करती हैं / (भगवान् ने उस समस्त परिषद् तथा उदायन नृप प्रादि को) धर्मकथा कही। 22. तए णं से उदायणे राया समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्म सोच्चा निसम्म हद्वतु? उडाए उट्ठति, उ० 2 ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो जाव नमंसित्ता एवं बयासी'एवमेयं भंते ! तहमयं भंते ! जाव से तहेयं तुब्भे वदह, ति कट्ट, जं नवरं देवाणुप्पिया! अभीयोकुमारं रज्जे ठावेमि / तए णं अहं देवाणुप्पियाणं अंतिए मुडे भवित्ता जाव पव्वयामि"। ग्रहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंध / [22] उस अवसर पर श्रमण भगवान् महावीर से धर्मोपदेश सुन कर एवं हृदय में अवधारण करके उदायन नरेश अत्यन्त हर्षित एवं सन्तुष्ट हुए / वे खड़े हुए और फिर श्रमण भगवान् महावीर को तीन बार प्रदक्षिणा की यावत् नमस्कार करके इस प्रकार बोले- भगवन् ! जैसा आपने कहा, वैसा ही है, भगवन् ! यही तथ्य, है, यथार्थ है, यावत् जिस प्रकार आपने कहा है, उसी प्रकार है। यों कह कर भागे विशेषरूप से कहने लगे-'हे देवानुप्रिय ! (मेरी इच्छा है) कि अभीचि कुमार का राज्याभिषेक करके उसे राज (सिंहासन) पर बिठा हूँ और तब मैं आप देवानुप्रिय के पास मुण्डिन हो कर यावत् प्रवजित हो जाऊँ।'... (भगवान् ने कहा-) 'हे देवानुप्रिय ! तुम्हें जैसा सुख हो, (वैसा करो,) (धर्मकार्य में विलम्ब मत करो। विवेचन प्रस्तुत चार सूत्रों (सू. 16 से 22 तक) में उदायन राजा के पूर्वोक्त संकल्प को जान कर भगवान् ने वीतिभयनगर में पदार्पण किया, नागरिकों तथा राजपरिवारसहित स्वयं उदायन राजा द्वारा भगवान् को वन्दना-पर्यु घासनादि तथा धर्मकथा-श्रवण का, तदनन्तर अभीचि कुमार को राज्याभिषिक्त करके स्वयं प्रवजित होने की इच्छा का तथा भगवान द्वारा इच्छा को यथासुख शीघ्र कार्यान्वित करने की प्रेरणा का वर्णन है। स्वपुत्र-कल्याणकांक्षी उदायननृप. द्वारा. अभीचि कुमार के बदले अपने भानजे का राज्याभिषेक .. 23. तए णं से उदायणे राया समणेणं भगवया महावीरेणं एवं वुत्ते समाणे हद्वतुट्ट० समणं भगवं महावीरं वंदति नमंसति, वं० न० ता तमेव आभिसेवक हत्थि दुरूहति, 2 ता समणस्स भगवनो 1. देखिये--औपपातिकसूत्र प.६१ से 12 तक में (आगमोदय समिति) 2. वियाहपण्णतिसुत्त (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त) पृ. 643 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org