________________ सेरहवां शतक : उद्देशक 1] [243 23, केवतिया नपुंसगवेदगा उववज्जति ? 24, केवतिया कोहकसाई उववज्जंति ? 25, जाव केवतिया लोभकसायी उववज्जति ? 26-28, केवतिया सोतिदियोवउत्ता उववति ? 29, जाव केवतिया फासिदियोवउत्ता उववज्जति ? 30-33, केवतिया नोइंदियोवउत्ता उववज्जति ? 34, केवतिया मणजोगी उववज्जति ? 35, केवतिया वइजोगी उववज्जति ? 36, केवतिया कायजोगी उववजति ? 37, केवतिया सागारोवउत्ता उववज्जति ? 38, केवतिया अगागारोवउत्ता उववज्जति ? 39? गोयमा ! इमोसे रयणप्पभाए पुढवीए तोसाए निरयावाससयसहस्सेसु संखेज्जवित्थडेसु नरएसु जहन्नणं एकको वा दो वा तिणि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा नेरइया उववज्जंति 1 / जहन्नणं एकको वा दो वा तिणि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा काउलेस्सा उववज्जति 2 / जहन्नणं एक्को वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा कण्हपक्खिया उववज्जति 3 ! एवं सुक्कपक्खिया वि 4 / एवं सन्नी 5 / एवं असण्णी 6 / एवं भवसिद्धिया 7 / एवं अभवसिद्धिया 8, आमिणिबोहियनाणी 9, सुयनाणी 10, ओहिनाणी 11, मतिअन्नाणी 12, सुयअन्नाणो 13, विभंगनाणी 14 / चक्खुदंसणी न उववज्जति 15 / जहन्नणं इक्को वा दो वा तिणि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा अचक्खुदंसणी उववज्जति 16 / एवं ओहिदंसणो वि 17, आहारसण्णोवउत्ता वि 18, जाव परिग्गहसण्णोवउत्ता, वि 19-20-21 / इथिवेदगा न उववज्जति 22 / पुरिसवेदगा वि न उववज्जति 23 / जहन्नणं एक्को वा दो वा तिणि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा नपुसगवेदगा उबवज्जति 24 / एवं कोहकसायी जाव लोभकसायी 25-28 / सोतिदियोवउत्तान उबवज्जति 26 / एवं जाव फासिदियोवउत्तान उववज्जति 30-33 / जहन्नणं एकको वा दो वा तिष्णि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा नोइंदियोवउत्ता उववज्जति 34 / मणजोगी ण उववज्जंति 35 / एवं वइजोगो वि 36 / जहन्न णं एक्को वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा कायजोगी उववज्जंति 37 / एवं सागारोवउत्ता वि 38 / अणागारोवउत्ता वि 39 / [6 प्र.] भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नारकावासों में से संख्येयविस्तृत नरकों में एक समय में (1) कितने नैरयिक जीव उत्पन्न होते हैं ? (2) कितने कापोतलेश्या वाले नैरयिक जीव उत्पन्न होते हैं ? (3) कितने कृष्णपाक्षिक जीव उत्पन्न होते हैं ? (4) कितने शुक्लपाक्षिक जीव उत्पन्न होते हैं ? (5) कितने संज्ञी जीव उत्पन्न होते हैं ? (6) कितने असंज्ञी जीव उत्पन्न होते हैं ? (7) कितने भवसिद्धिक जीव उत्पन्न होते हैं ? (8) कितने अभवसिद्धिक जीव उत्पन्न होते हैं ? (E) कितने प्राभिनिवोधिक ज्ञानी उत्पन्न होते हैं ? (10) कितने श्रुतज्ञानी उत्पन्न होते हैं ? (11) कितने अवधिज्ञानी उत्पन्न होते हैं ? (12) कितने मति-अज्ञानी उत्पन्न होते हैं ? (13) कितने श्रुत-अज्ञानी उत्पन्न होते हैं ? (14) कितने विभंगज्ञानी उत्पन्न होते हैं ? (15) कितने चक्षुदर्शनी उत्पन्न होते हैं ? (16) कितने अचक्षुदर्शनी उत्पन्न होते हैं ? (17) कितने अवधिदर्शनी उत्पन्न होते हैं ? (18) कितने आहार-संज्ञा के उपयोग वाले जीव उत्पन्न होते हैं ? (16) कितने भय-संज्ञा के उपयोग वाले जीव उत्पन्न होते हैं ? (20) कितने मैथुन-संज्ञा के उपयोग वाले जीव उत्पन्न होते हैं ? (21) कितने परिग्रह-संज्ञा के उपयोग वाले जीव उत्पन्न होते हैं ? (22) कितने स्त्रीवेदक जीव उत्पन्न होते हैं ? (23) कितने पुरुषवेदक जीव उत्पन्न होते हैं ? (24) कितने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org