________________ 236 // [व्याख्याप्रज्ञप्तिसून प्रवक्तव्य है (एकवचन और बहुवचन की अपेक्षा से चार भंग); (12-15) कञ्चित् नो प्रात्मा और अवक्तव्य ; (एकवचन और बहुवचन को अपेक्षा से चार भंग); (16) कथंचित् प्रात्मा और नो प्रात्मा तथा प्रात्मा-नो आत्मा उभयरूप से- अवक्तव्य है। (17) कथंचित् आत्मा और नो आत्मा तथा आत्माएँ और नो-आत्माएँ उभय होने से अवक्तव्य है। (18) कथंचित् आत्मा और नो आत्माएँ तथा आत्मा-नो आत्मा उभयरूप होने से—(कथंचित्) प्रवक्तव्य है और (16) कथंचित् आत्माएँ, नो-आत्मा, तथा आत्मा-नो आत्मा उभयरूप होने से (कथंचित्) प्रवक्तव्य हैं / [2] से केण?णं भंते ! एवं वुच्चइ-चउपएसिए खंधे सिय आया य, नो आया य, अवत्तव्वं तं चेव अट्ठ पडिउच्चारेयध्वं / गोयमा ! अपणो आदि8 आया 1, परस्स आदिटु नो आया 2, तदुभयस्स आदि? अवत्तन्वं० 3, देसे आदिट्ठ सम्भावपज्जवे, देसे आविट्ठ असम्मावपन्जवे चउभंगो, सम्भावपज्जवेणं तदुभयेण य चउभंगो, असम्भावेणं तदुभयेण य चउभंगो; देसे आदि? सम्भावपज्जवे, देसे आदि? असम्भावपज्जवे, देसे आदितु तदुभयपज्जवे चउप्पएसिए खंधे आया य, नो आया य, अवत्तन्वं--- आया ति य नो आया ति य; देसे प्रादि8 सम्भावपज्जवे, देसे आदिट्ठ असम्भावपज्जवे, देसा आदिट्ठा तदुभयपज्जवा चउप्पएसिए खंधे आया य, नो आया य, प्रवत्तब्वाइं आयाओ य नो आयानो य 17, देसे आदिट्ठसम्भावपज्जवे, देसा आदिट्ठा असम्भावपज्जवा, देसे आदि8 तदुभयपज्जवे चउप्पएसिए खंधे प्राया य, नो आयाओ य, अवत्तन्छ-आया ति य नो आया ति य 18, देसा आदिवा सम्भावपज्जवा, देसे आदि8 असम्भावपज्जवे, देसे आदितदुभयपज्जवे चउप्पएसिए खंधे आताओ य, नो आया य, अवत्तन्वं-आया ति य नो आया ति य 19 / से तेणढणं गोयमा ! एवं वुच्चइ चउप्पएसिए खंधे सिय आया, सिय नो आया, सिय अवत्तन्वं / निक्खेवे ते चेव भंगा उच्चारेयच्या जाव नो आया तिय। [30-2 प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहते हैं कि चतुष्प्रदेशी स्कन्ध कथंचित् अात्मा (सद्रूप) आदि होता है ? [30-2 उ.] गौतम ! (1) अपने आदेश (अपेक्षा) से (चतुष्प्रदेशी स्कन्ध) प्रात्मा (सद्रूप) है, (2) पर के आदेश से (वह) नो आत्मा है; (3) तदुभय (आत्मा और नो-प्रात्मा, इस उभयरूप) के आदेश से प्रवक्तव्य है / (4-7) एक देश के आदेश से सद्भाव-पर्याय की अपेक्षा से और एक देश के आदेश से असद्भाव-पर्याय की अपेक्षा से (एकवचन और बहुवचन के आश्रयो) चार भंग होते हैं / (8-11) सद्भावपर्याय और तदुभयपर्याय की अपेक्षा से (एकवचन-बहुवचन-पाश्रयी) चार भंग होते हैं 1 (12-15) असद्भावपर्याय और तदुभयपर्याय की अपेक्षा से (एकवचन-बहुवचन-प्राश्रयी) चार भंग होते हैं / (१६)एक देश के आदेश से सद्भावपर्याय की अपेक्षा से, एक देश के प्रादेश से असद्भाव-पर्याय की अपेक्षा से और बहुत देशों के आदेश से तदुभय-पर्याय की अपेक्षा से चतुष्प्रदेशी स्कन्ध, आत्मा, नो-आत्मा और प्रात्मा-नो-प्रात्मा-उभयरूप होने से अवक्तव्य है / (17) एक देश के आदेश से सद्भावपर्याय की अपेक्षा से, एक देश के आदेश से असद्भावपर्याय की अपेक्षा से और बहुत देशों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org