________________ 234) [व्याल्याप्रज्ञप्तिसूत्र है। १२-कथंचित् नो पात्माएँ (अनेक असद्रूप) तथा प्रात्माएँ-नो आत्माएँ (अनेक सद्-असद्रूप) उभयरूप होने से प्रवक्तव्य हैं और १३---कथंचित् आत्मा (सद्रूप), नो-प्रात्मा (असद्रूप) और प्रात्मा-नो आत्मा (सद्-असद्) उभयरूप होने से--अवक्तव्य है। [2] से केपट्ठणं भंते ! एवं चुच्चति "तिपएसिए खंधे सिय पाया य० एवं चेव उच्चारेयम्वं जाव सिय आया य नो आया य अवत्तव्वं--आया-ति य नो आया ति य? गोयमा ! अप्पणो आविट्ठ आया 1; परस्स आइ8 नो आया 2; तदुभयस्स आइ8 अवत्तत्वं प्राया ति य नो प्राया ति य 3, देसे आदिट्ट सम्भावपज्जवे, देसे आदितु असम्भावपज्जवे तिपदेसिए खंध आया य नो पाया य 4; देसे आदिट्ट सम्भावपज्जवे, देसा आइटा असम्भावपज्जवा तिपएसिए खंधे आया य नो पायाओ य 5; देसा आदिट्टा सम्भावपज्जवा, देसे आदितु असल्भावपज्जवे तिपएसिए खंधे आयाओ य नो आयाय 6, देसे आदि सम्भावपज्जवे, देसे आदितदुभयपज्जवे तिपएसिए खंधे आया य अवत्तव्वं-आया इ य नो आया ति य 7; देसे आदिट्ट सम्भावपज्जवे, देसे आदिट्ठा तदुभयपज्जवा तिपएसिए खंधे प्राया य अवत्तवाई-आयामो य नो आयामो य 8 देसा आदि? सम्भावपज्जवा, देसे आदि? तदुभयपज्जवे तिपएसिए खंधे आयाओ य अवतव्वं आया ति य नो आया ति य 9; एए तिणि भंगा / देसे आदितु असम्भावपज्जवे, देसे आदितु तदुभयपज्जवे तिपएसिए खंधे नो पाया य अवत्तवं-आया ति य नो प्राया ति य 10; देसे आदि? असन्भावपज्जवे, देसा आदिट्ठा तदुभयपज्जवा तिपएसिए खंधे नो आया य अवत्तच्वाई-आयाओय नो आयाओ य 11; देसा आविट्ठा असम्भावपज्जवा, देसे आदितु तदुभयपज्जवे तिपएसिए खंधे नो आयओ य अवत्तव्वं आया ति य नो माया ति य 12; देसे आदिट्ठ सम्भावपज्जवे, देसे प्रादिटु असम्भावपज्जवे, देसे आदिटु तदुभयपज्जवे तिपएसिए खंधे आया य नो पाया य अवत्तन्वं आया ति य नो आया ति य 13; से तेण?णं गोयमा ! एवं वुच्चइ तिपएसिए खंधे सिय आया० तं चेव जाव नो प्राया ति य / [29-2 प्र.] भगवन् ! किस कारण से आप ऐसा कहते हैं कि त्रिप्रदेशी स्कन्ध कथंचित् आत्मा है, इत्यादि सब पूर्ववत्, यावत्-कथंचित् आत्मा है, नो प्रात्मा है और आत्मा-नो आत्मउभय रूप होने से प्रवक्तव्य है ? (तक) उच्चारण करना चाहिए। [26-2 उ.] गौतम ! त्रिप्रदेशी स्कन्ध 1. अपने आदेश (अपेक्षा) से प्रात्मा (सद्रूप) है; 2. पर के आदेश से नो आत्मा (असदरूप) है. 3. उभय के आदेश से प्रात्मा और नो प्रात्मा इस प्रकार उभयरूप होने से प्रवक्तव्य है। 4. एक देश के आदेश से सद्भाव-पर्याय की अपेक्षा से और एक देश के आदेश से असद्भाव-पर्याय की अपेक्षा से वह त्रिप्रदेशी स्कन्ध अात्मा और नो-प्रात्मारूप है। 5. एक देश के प्रादेश से सद्भाव पर्याय की अपेक्षा से और बहुत देशों के आदेश से असद्भाव पर्याय की अपेक्षा से, वह त्रिप्रदेशी स्कन्ध प्रात्मा और नो आत्माएँ हैं। 6. बहत देशों के आदेश से व पर्याय को अपेक्षा से और एक देश के आदेश से असदभाव पर्याय की अपेक्षा से त्रिप्रदेशी स्कन्ध आत्माएँ और नो प्रात्मा है। 7. एक देश के आदेश से सद्भाव पर्याय की अपेक्षा से और एक देश के आदेश से उभय-(सद्भाव और असद्भाव) पर्याय की अपेक्षा से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org