Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
(भगवन्) भगवान (वक्तुमर्हसि) आपके द्वारा कहे जाने चाहिये (प्रश्न) जो प्रश्न है (सर्वे) उन सबको (वयमन्ये) हम सब (च) और (साधवः) साधु लोग (शुश्रूषव:) सुनना चाहते हैं॥ १६-१७-१८-१९-२०-२१॥
भावार्थ- हे भगवन् महामति के धारण, अनुक्रम से जो दिव्य निमित्त ज्ञान है जैसे उल्का, परिवेश, विद्युत, अभ्र सन्ध्या , मेघ, वात, प्रवर्षण, गंधर्व नगर, गर्भ यात्रा, उत्पात, अलग-अलग ग्रहाचार, गृह युद्ध, वातिक, स्वप्न, मुहूर्त, तिथी करण, निमित्त शकुन, पाक, ज्योतिष, वास्तु, दिव्येन्द्र संपदा, लक्षण, व्यंजन, चिह्न, दिव्यौषध, बलाबल, विरोध और जय पराजय का वर्णन कीजिये। हे गुरुदेव, जिस क्रम से इन का वर्णन किया है आपने उसी क्रम से हमें और सर्व साधुओं को कहिये यही हमारे प्रश्न हैं, प्रश्नों का उत्तर सुनने को हम लोग बहुत ही उत्कंठित
इन सब उल्कादिकों का क्रमश: अध्यायानुसार वर्णन आगे करेंगे, इस अध्याय में प्रथम मंगलाचरण भद्रबाहु आचार्य ने कहा है, प्रथम मंगलाचरण में भगवान महावीर को नमस्कार किया गया है, फिर ग्रंथ रचना का स्थान, राजा आदि व पर्वत का वर्णन किया। उस पर्वत पर शिष्य समुदाय से सहित व श्रावक समुदाय से सहित आचार्य भद्रबाहु दिखाये गये हैं। उस के बाद शिष्य लोग गुरु से प्रार्थना कर रहे हैं कि हे गुरुदेव, जो सर्वज्ञ भगवान के मुख से निकला हुआ द्वादशांग रूप श्रुत ज्ञान तो बहुत विस्तार रूप में है। हमारे बुद्धि में नहीं उतरता सो आप उसमें से कुछ दिव्य निमित्त ज्ञान जो साधु और श्रावकों के उपकार के लिए कारण है उसको कहो। हमें बहुत ही प्रश्न उठ रहे हैं। आप ही समाधान कर सकते हैं। आगे भी बुद्धिहीन जीव ही होंगे, उनका भी उपकार होगा। शुभाशुभ निमित्तों को जानकर राजा भी सुख से प्रजा का पालन कर सकेगा, सुखी रहेगा और जो साधुगण है वो भी निमित्तों के बल से शुभाशुभ को जानकर ग्राम नगरादि को छोड़कर सुखपूर्वक अन्यत्र विहार कर सकेंगे। यह दिव्य निमित्त ज्ञान सर्वज्ञ भाषित है, अष्टांग निमित्तों से सहित है। पंचम काल में साधु हीन मति होंगे, सो आप ही अब उन निमित्तों का वर्णन संक्षिप्त, स्पष्ट, और सरल कह सकते हैं, और आप ही के मुख से हम सुनना चाहते हैं। इत्यादि प्रश्न आचार्य श्री भद्रबाहु स्वामी के सामने शिष्यों ने कहे।