Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संशिता
सर्वेषामेव सत्त्वानां दिव्यज्ञानं सुखावहम्।
भिक्षुकाणां विशेषेण परपिण्डोपजीविनाम् ।। १३॥ (दिव्य ज्ञानं) दिव्य निमित्त ज्ञान (सर्वेषाम्) सम्पूर्ण (सत्त्वानां) जीवों के लिए (सुखावहम्) सुख को देने वाला मेव ही है, और (परपिण्डोपजीविनाम्) पर अन्य के आश्रित (भिक्षुकाणां) साधुओं को (विशेषण) विशेष रीति से सुख देने वाला
है।
भावार्थ—सर्वज्ञ भगवान के द्वारा कहा हुआ दिव्य निमित्त ज्ञान सम्पूर्ण जीवों को सुख देने वाला है, और विशेष रीति से श्रावकों को एवं अन्य आश्रित साधुओं को तो बहुत ही सुख देने वाला है॥१३॥
विस्तीर्ण द्वादशाङ्गं तु भिक्षवश्चाल्पमेधसः।
भवितारो हि बहवस्तेषां चैवेदमुच्यताम्॥१४॥ (द्वादशाङ्गतु) द्वादशाङ्ग ज्ञान तो (विस्तीर्ण) बहुत ही विस्तार रूप है (अल्पमेधसः) थोड़ी बुद्धि वाले (भिक्षव) साधु (बहव) बहुत (हि) ही (भवितारो) आगामी काल में होगें (तेषां) इसलिये (चैवेदमुच्यताम्) निमित्त ज्ञान का उपदेश कीजिये।
भावार्थ-भगवान के द्वारा कहा हुआ द्वादशांङ्ग ज्ञान तो बहुत ही विस्तार रूप में है और अब आगे थोड़ी बुद्धि वाले साधु होंगे, उनके लिए दिव्य निमित्त ज्ञान को कहिये॥१४ ।।
सुखग्राहं लघुग्रंथं स्पष्टं शिष्यहितावहम्।
सर्वज्ञभाषितम् तथ्यं निमित्तं तु ब्रवीहि नः ॥१५॥ (सर्वज्ञभाषितम्) सर्वज्ञ के द्वारा भाषित हो (लघुग्रंथ) लघु रूप में ग्रंथ हो (सुखग्राह) सुख को देने वाला हो (शिष्यहितावहम्) शिष्यों के हित योग्य हो (स्पष्टं) स्पष्ट रूप हो (तथ्यं) तथ्य रूप हो ऐसे (निमित्तं तु) निमित्त ज्ञान को (ब्रवीहि नः) हमें आप कहो।
भावार्थ---हे आचार्य भगवंत आज आप उस दिव्य निमित्त ज्ञान जो सर्वज्ञ