Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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प्रथमोऽध्यायः
भगवान के द्वारा कहा हुआ हो, संक्षेप में हो, सुख को प्रदान करने वाला हो, शिष्यों का हित करने वाला हो, स्पष्ट रूप में हो, सार रूप हो, उसको हमें कहिये ।। १५ ।।
उल्का: समासतो व्यासात् परिवेषांस्तथैव च। विद्युतोऽभ्राणि सन्ध्याश्च मेघान् वातान् प्रवर्षणम् ।।१६।। गन्धर्वनगरं गर्भान् यात्रोत्पातांस्तथैव च। ग्रहचारं पृथक्त्वेन ग्रहयुद्धं च कृत्स्नतः ॥१७॥ वातिकं चाथ स्वप्नांश्च मुहूर्ताश्च तिथींस्तथा। करणानि निमित्तं च शकुनंपाकमेव च ॥१८|| ज्यौतिषं केवलं कालं वास्तुदिव्येन्द्र सम्पदा। लक्षणं व्यञ्जनंचिह्न तथादिव्यौषधानि च ॥१९॥ बलाऽबलं च सर्वेषां विरोधं च पराजयम् । तत्सर्वमानुपूर्वेण प्रब्रवीहि महामते ! ॥२०|| सर्वानेतान् यथोद्दिष्टान् भगवन् वक्तुमर्हसि।
प्रश्नान् शुश्रूषवः सर्वे वयमन्ये च साधव: ।।२१॥ (महामते) हे महाबुद्धिमान् (तत्सर्वमानुपूर्वेण) सबको क्रम से (समासतो) संक्षेप से (व्यासात) विस्तार से (उल्का) उल्का (परिवेषां) परिवेषों को (च) और (विद्युतो) विद्युतों को (अभ्राणि) अभ्र (सन्ध्याश्च) सन्ध्या को (च) और (मेघान्) मेघों को (वातान्) वात (प्रवृर्षणम्) प्रवर्षण (गन्धर्व नगरं) गन्धर्व नगर (गर्भान्) गर्भ (यात्रोत्पातांस्तथैव च) यात्रा, उत्पात, इसी प्रकार (ग्रहचारंपृथक्वेन) पृथक् गृहचार को (ग्रह युद्धं) गृह युद्ध (च) और (कृत्स्नतः) (वातिकं) वातिक (चाथ) अतः (स्वप्नांश्च) स्वप्न (मुहूर्ताश्च) मुहूर्त (तिथीस्तथा) तिथी (करणानि) करण (निमित्तं) निमित्त (च) और (शकुनं) शकुन (पाकमेव) पाक है (च) और (ज्योतिष) ज्योतिष (केवलं कालं) केवल काल (वास्तु) वास्तु (दिव्येन्द्र संपदा) दिव्येन्द्र संपदा (लक्षणं) लक्षण (व्यंजन) व्यंजन (चिह्न) चिह्न (तथादिव्यौषधानि) तदिव्य औषधि (च) और (बलाऽबलं) बलाबल (च) और (सर्वेषां) संपूर्ण (विरोधं) विरोध (च पराजयं) पराजय को (प्रब्रवीहि) कहो (यथोद्दिष्टान्) जो ऊपर कहे हुए (सर्वानेतान्) संपूर्ण