Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobetirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पुराख
पा अपने शरीरसे भी उदास होय दिगंबरी दीक्षा श्रादरी राजा पूर्ण बुद्धिवान महा धीरवीर पृथ्वी पर । ॥१०९० चन्द्रमा समान उज्ज्वल है कीर्ति जिसकी ध्यान रूप गजपर चढ़करतपरूपीतीक्ष्णशस्त्र से कर्म
रूप शत्रु को काट सिद्ध पदको प्राप्त भए प्रति चन्द्र भी केएक दिन राज कर अपने पुत्र किहकंघ को राज्य देय और छोटे पुत्र अधिक रूढ़ को युवराज पद देय श्राप दिगम्बर होय शुक्ल ध्यान के प्रभाव से शिवस्थान को प्राप्त भए ।
राजा किहकन्ध और अधिक रूढ़ दोऊ भाई चांद मूर्य समान औरोंके तेजको दाबकर पृथ्वी पर प्रकाश करते भये उस समय विजिया पर्वतकी दक्षिण श्रेणीमें रत्नपुर नामा नगर सुरपुर समान वहां राजा अशनिवेग महा पगक्रमी दोऊ श्रेणीके स्वामी जिनकी कीर्ति सबके मनको हरनहारी उनके पुत्र विजयसिंह महारूपवानथे आदित्यपुरके राजा विद्या मन्दिर विद्याधर उसकी राणी वेगवती उसकी पुत्री श्रीमाला उसके विवाह निमित्त जो स्वयंवर मंडप रचाथा और अनेक विद्याधर पाएथे वहां प्रशनिवेगके पुत्र विजयसिंह भी पधारे श्रीमाला की कांतिसे श्राकाशमें प्रकाश होय रहा है, सकल विद्याधर सिंहासनोंपर बैठे हैं बड़े २ राजाओंके कुंवर थोड़े २ साथसे तिठे हैं सबकी दृष्टि नील कमलों की पंक्तिकी समान श्रीमालाके ऊपर पड़े श्रीमालाको किसीसे भी रागद्वेष नहीं मध्यस्थ परिणाम है वे विद्याधर कुमार मदनसे तप्त हैं चित्त जिनका अनेक सविकार चेष्टा करते भए कैएक तो माथेका मुकट निकंपथातोभी उसकोसुन्दर हाथोंसे ठीक करते भए कैएक खंजरपासवराथातोभी करके || अप्रभागसे हिलावते भए कटाचकर करीहे दृष्टि जिन्होंने और कैएकके किनारे मनुष्य चमर ढोरते |
For Private and Personal Use Only