Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पुराण
पद्म वर्धन अयोध्याका राज्य करता भया और मधुसैकड़ों बरस ब्रतपाल दर्शन ज्ञान चारित्रतप एही चार
अाराधना आराध समाधि मरणकर सोलवां अच्युत नामा स्वर्ग वहां अच्युतेंन्द्र भया और कैटभ पंद्रमा पारण नामा स्वर्ग वहां पारणेंद्र भया गौतम स्वामीकहे हैं हे श्रेणिक यह जिनशासनका प्रभाव जानों जो ऐसे अनाचारीभी अनाचारका त्यागकर अच्युतेंद्र पदपावे अथवा इन्द्र पदका कहां आश्चर्य जिन धर्मके प्रसादसे मोक्ष पावे मधुका जीव अच्युतेंद्रथा उसके समीप सीताका जीव प्रतेंद्र भया और मधु का जीव स्वर्गसे चयकर श्रीकृष्णकी रुक्मिणी राणीके अद्युम्न नामा पुत्र कामदेव होय मोक्ष लही और कैटभका जीव कृष्णकीजामवन्ती राणीके शंभुकुमार नामा पुत्र होय परम धामको प्राप्त भया यह मधूका व्याख्यान तुझे कहा अब हे श्रेणिक बुद्धिवन्तों के मनको प्रिय ऐसे लक्ष्मण के श्रष्ट पुत्र महा धीरबीर तिनका चरित्र पापोंका नाश करणहारा चित्तलगाय सुनो॥ इति १०६ वां पर्व संपूर्णम ॥
अथानन्तर कांचन स्थान नामा नगर वहां राजा कांचनरथ उसकी राणी शतहदा उसके पुत्री दोय अति रूपवन्नी रूपके गबकर महा गर्बिततिनकेस्वयंवरके अर्थ अनेक राजाभूचर खेचर तिनके पुत्र कन्याके पिता नेपत्रलिख दूत भेजे शीघ्बुलाएसोदूत प्रथमही अयोध्या पठाया और पत्रमें लिखा मेग पुत्रियोंकास्वयंबर है से अपकृपाकरकुमारोंकोशीघ्रपठावोतबरामलक्षमणने प्रसन्नहायपरम्ऋषियुक्तसर्वसुतपठाएदोनोंभाइयों के सकल कुमार लव अंकुशको अग्रेसर कर परस्पर महा प्रेमके भरे कांचनस्थानपुर को चले सैकड़ों विमानों में बैठे अनेक विद्याधर लार,रूपकर लक्षमीकर देवों सारिखे अाकाशके मार्ग गमन करते भये | सोबडी सना सहित आकाश स पृथिवी को देखते जावें कांचनस्थानपुर पहुंचे वहां दोनों श्रोणियोंके विद्या
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