Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म पुराम १०२७
। के शिखरसे सिद्ध भये। केवल ज्ञान केवलदर्शनादि अनन्त गुणमईसदा सिद्ध लोक में रहेंगे॥इति ११३पर्व ।।
अथानन्तर श्रीराम सिहासनपर विराज थे लक्ष्मणक आठों पुत्रोंका और हनूमानका मुनि होना मनुष्यों के मुखसे सुनकर हंसे और करते भए इन्होंन मनुष्य भवके क्या सुख भोगे यह छोटी अवस्था में ऐसे भोग तजकर योग धारण करें हैं सो बड़ा आश्चर्य है यह हठ रूप ग्राहकर रहे हैं देखों ऐसे मनोहर काम भोग तज विरक्त होय बैठे हैं इस भांति कही यद्यपि श्रीराम सम्यकदृष्टि ज्ञानी हैं तथापि चारित्र मोहके वश कई एक दिन लोकोंकी न्याई जगत विषे रहते भय संमारके अल्पसुख तिन विषे गमलक्ष्मण न्याय सहित राज्य करते भये एक दिन महा ज्योतिका धारक सौधर्म इन्द्र परम ऋद्धिकर युक्त महा धीर्य और गम्भीरताकर मंडित नाना अलंकार धरे सामान्य जातिके देव जे गुरुजन तुल्य और लोक पाल जातिके देव देशपाल तुल्य और त्रयस्त्रिंशत जातिके देव मन्त्री समान तिनकर मंडित तथा
ओर सफल देव सहित इन्द्रासन विषे बैठे कैसे सोहें जैसे मुमेरु पर्वत और पर्वतों के मध्य सोहें महा तेज पुंज अद्भुत रत्नों का सिंहासन उसपर सुख से विराजता ऐसा भासे जैसे सुमेरु के ऊपर जिन राज भासे । चन्द्रमा और सूर्यकी ज्योति को जीते ऐसे रत्नोंके अाभूपण पहिरै सुन्दर शरीर मनोहर रूप नेत्रों के अानन्दकारी जैसी जल की तरंग निर्मल तैसी प्रभा कर युक्त हार पहिरे ऐसा सोहे मानों शीतोदा नदी के प्रवाह कर युक्त निषध्याचल पर्वत ही है मुकट कंठाभरण कुण्डल केयूर
आदि उत्तम ग्राभूषण पहिरे देवों कर मंडित जैसा नक्षत्रों कर चन्द्रमा सोहे तैसा सोहे है अपने || मनुष्य लोक में चन्द्रमा नक्षत्र ही भासे इस लिये चन्द्रमा नक्षत्रोंका दृष्टान्त दियाहै चन्द्रमा नक्षत्र
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