Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay

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Page 1071
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परीण - पद्म । हे देव यह कौन बनस्पति है और कोई एक माधवी लता के पुष्प के ग्रहण के मिस बाहूं ऊंची करती १०६१॥ अपना अंग दिखावतीभई, और कोईएक भेलीहोय कर ताली देती रासमंडल रचती भई, पल्लवसमान है कर जिनके और कोई परस्पर जल केलि करती भई इस प्रकार नाना भान्तिको क्रीडा कर मुनों के मन डिगायवे का उद्यम करती भई, सो हे श्रेणिक जैसे पवन कर सुमेरु न डिगे तैमे श्रीरामचन्द्रमुनि को मन न डिगा अात्म स्वरूप के अनुभवी रामदेव सरल है दृष्टि जिनकी विशुद्ध हैआत्मा जिनका परीषह रूप वज्रपात से न डिगे क्षपक श्रेणी चढ़े शुक्लध्यान के प्रथम पाए विषे प्रवेश किया, रामचन्द्र का भाव अात्मा में लग अत्यन्त निर्मल भया सो उनका जोर न पहुंचा मूढजन अनेक उपाय करें परन्तु ज्ञानी पुरुषों का चित्त न चले, वे आत्म स्वरूप में ऐसे दृढ़ भए जो किसी प्रकार नचिगे प्रतेन्द्रदेव ने माया कर . राम का ध्यान डिगायवे को अनेक यत्न किए परन्तु कछुही उपाय न चला, वे भगवान् पुरुषोत्तम अनादि काल के कर्मोको वर्गणा दग्य करिवेको उद्यमीभए पहिलेपाएके प्रसादसेमोहकानाशकर बारह में गुणस्थान चढ़े वहां शुक्लन्यान के दूजे पाए के प्रशाद से ज्ञानावर्ण अन्तराय का अन्तकिया, माघ शुक्ल द्वादशोकी पिछली रात्रि केवलज्ञान को प्राप्त भदे केवल ज्ञानविषे सर्व द्रव्य समस्तपर्याय प्रति. भामे ज्ञान, रूप दर्पन में लोकालोक सब भासे ता इन्द्रादिक देवों के आसन कंपायमान भए अवधि ज्ञान कर। भगवान राम को केवल उपजा जान कर कंवल कल्याणक की पूजा को आए, महाविभूति संयुक्त देवों कर समूह सहित बड़े श्रद्धावान सब ही इन्द्र पाए घातिया कर्म के नाशक अहंत परष्ठी तिनको चारण | मुनि और चतुरनिकाय के देव सब ही प्रणाम करतेभए वे भगवान छत्र चमर सिंहासन आदिकर शोभित । For Private and Personal Use Only

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