Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पन मुनित्रत पाल केवलीभये सो आय पर्यंत केवल दशा में भव्यों को धर्मोपदेश देय तीन भाकनका शिखर ।१०७१ जो सिद्ध पद बहां सिघारे, सिद्धपद सकल जीवोंकातिलक है रामसिद्धभये तुम रामकोसीसनिवायनमस्कार
| करो रामसुरनर मुनियों कराराधिषे योग्य हैं शुद्धहें भाव जिनके संसार के कारण जे रागदेपमोहादिक | तिनसे रहित हैं परमसमाधि के कारण हैं और महामनोहर हैं प्रतापकर जीता है नरुण मूर्य कालेज
जिन्होंने और उन जैसीशरदकी पूर्णमासीकेचंद्रमा में कांति नहीं सर्व उपमारहित अनुपम वस्तु हें और रूप | जो प्रात्मरूप उस में प्रारुढ हैं श्रेष्ठ हैं चरित्रजिनके श्रीराम यतीश्वरोंके ईश्वरदेवों के अधिपति प्रोद्रकी
माया से मोहिते न भये जीवों के हितु परम ऋद्धिकर युक्त भष्टम बलदेव पवित्र शरीर सोभायमान अमंस बीर्थ के धारी अतुल महिमा कर मंडित निर्विकार अगरहदोष कर रहित अष्टादशसहस्र शील के भेद तिनकर पूर्व प्रतिदार अति मंभीर ज्ञान के दीपक तीनखोक में प्रकट है प्रकाश जिनका अष्टकर्मफेदापकरणारे गणीसागर लोभ रहित सुमेरुसे प्रचलधर्मके मलकपायस्परिपुके नाशक समस्तविकल्परहित महानिर्दछ जिनशासमकारस्पपाय अंतरात्मा से परमात्माभये उन्होंने ग्रेखोक्यपज्य परमेश्वरपद पायातिनकोसुम पोपोर मरे हैं कर्मरूपमल जिन्होंने, केवलज्ञान केवल दर्शनमई योमीश्वरोंके नाथ सर्वदुःखकं वर करणहारे । मन्मथ नहारे तिनको प्रेखाम करो, यह श्रीवलदेव का चरित्र महामनोग्पजो भाषभर निरंसरबांचे सुने पढे पढाये शका रहित होय महाहर्षका भरा रामकी कथा का अभ्यास करे तिसके पुण्य की वृद्धि होय 'बीर पैरी खड्ग हाय मैलिये मारित्र को आया होय सो शांत होय जाय, इसग्रंथ के श्रवणसे-धर्म ।
अभी इधर्म को सहे यस का अर्थी यस को पावे राज्यबा और सज्य कामनाहोय तोराज्य
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