Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म
पुराण
पीछेपंचमकालमें तीन केवली और पांचश्रुतकेवला भएको वहांलगतो पुराण पूर्ण भया, जैसा भगवान्ने गौतम १०७५ गणधरसे कहा औरगौतम ने श्रेणिक सेकहा वैसाश्रुतकेवलीयोंने कहा श्रीमहावीरपीछे बासठवर्षलग केवलज्ञान रहा, और केवल पीछेसौवर्षतक श्रुतकेवलीरहा पंचमश्रुतकेवली श्रीभद्रवाहुस्वामी तिनके पीछे कालके दोष से ज्ञान घटता गया तब पुराणका विस्तार न्यूनहोता भया, श्रीभगवान् महावीर को मुक्तिपधारे बारह सौ साढ़े `तीन वर्षभए तब रविषेण चार्यने अठारह हजार अनुष्टुप्रश्लोकों में व्याख्यानकियो यह रामका चरित्रसम्यक्त का कारण है केवलो श्रुतकेवली प्रणीत सदापृथिवी में प्रकाश करो जिनशासनक सेवक देव जिनभक्ति में परायण जिनधर्मी जीवों की सेवा करे हैं जे जिनमार्ग के भक्त हैं तिनके समीप सम्यक्तदृष्टि देव द्यावे हैं नाना विधि सेवा करे हैं महाचादर संयुक्त सर्वउपायकर आपदामें सहायक हैं अनादिकाल से सम्यक दृष्टि देवों . की ऐसीही रीति है जैनशास्त्र अनादि है काकाकीया नहीं व्यंजनस्वर यहसब अनादिसिद्ध हैं रविदेणाचार्य कहे हैं मैं कडुनहीं किया शब्द अर्थ अकृत्रिम हैं अलंकार बंद आगम निर्मल चित्त होय नीके जानने इस ग्रंथ में : धर्म अर्थ काम मोक्ष सर्व हैं अठारह हजार तेईस श्लोक का प्रमाण पद्मपुराण संस्कृत ग्रन्थ है इसपर यह भाषा भई सो जयवंत होवे जिनधर्म की वृद्धि होवे राजा प्रजा सुखी होवे ॥
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चौपाई - जम्बदीप सदा शुभस्थान । भरतक्षेत्र ता माहि प्रमाण । उस में यार्यखंड पुनीत । बसें ताहि में लोक विनीत ॥ १॥ तिसके मध्य दूं ढारजुदेश । निवसें जैनी लोक विशेष नगर सवाई जयपुर महा । तिसकी उपमा जायन कहा || २ || राज्य करे माधवनृप जहां । काम दार जैनी जन तहां ॥ ठौर और जिन मन्दिर बने । पूजे तिनको भवजन घने ॥ ३ ॥ बसे महाजन नाना जाति | सेवें जिनमारग बहुन्याति ॥ रायमल्ल साधर्मी
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