Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay

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Page 1086
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - पत्र एक। जिसके घटमें स्वपर विवेक ॥४॥दयावंत गुणवंत सुजान । परउपकारी परम निधान ॥दौलतरामसु ता । पुराण के मित्र।तासो भाष्यो वचन पवित्र ।।५॥ पद्मपुराण महाशुभ ग्रन्थ। तामें लोकशिखरको पंथ ॥भाषारूप होय । जो येह । बहुजन बांचे कर अतिनेह ॥६॥ तिसकेवचन हिये में धार । भाषाकीनी श्रुतिअनुसार ॥ रविषेणाचार्य कृतिसार । जाहि पढे, बुद्धिजन गणधार॥७॥जिनधर्मन की प्राज्ञा लेयाजिनशासनमांही चितदेय॥ आनन्द सुतने भाषा करी । नंदोविरदो अतिरस भरी ॥८॥ सुखी होवे राजा और लोक। मिटो सबनके दुख । अरु शोक । वरतो सदामंगलाचार ।। उतरो बहुजन भवजल पार॥६॥ सम्वत् अष्टादश सत जान । ता, ऊपर तेईस बखान (१८२३)। शक्लपक्ष नवमी शनिवार । माघ मास रोहिणीऋक्ष सार ॥१०॥ दोहा-ता दिन सम्पूरण भयो, यह ग्रन्थ सुखदाय । चतुरसंघ मंगल करो, बढ़े धर्म जिनराय ॥ इति श्रीरविषेणाचार्यविरचित महापद्मपुराण संस्कृत ग्रंथउसकी भाषावनिकामें १२४ वां पर्व संपूर्णम् ॥ सूचना-इस समय हिंदुस्तान में सब से बड़ा जैनग्रंथों का भंडार यही है क्योंकि यहां अपनी और पराई सर्व प्रकारकी पुस्तकें एकत्रित हैं आवश्यक्तापूर्वक मंगावो ॥ पुस्तक मिलने का पताला जैनीलाल जैनमालिक दिगम्बर जैनग्रन्थ प्रचारक कार्यालय मुकाम देवबन्द ज़िला सहारनपुर लाला जैनीलाल जैन के प्रबन्ध से जैनीलाल प्रिंटिंग प्रस दवबन्द में छपा । - - - For Private and Personal Use Only

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