Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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परगा
२०७४
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का भक्षा अगत्य में गनन
का छेद
सुरापान इत्यादि पाप के अनेक भेद हैं ये सब तजने और दया पालना सत्य बोलना चोदी न करनी शील पालना तृष्णातजनी कामलोभ तजने शास्त्र पढ़ना का को कुवचन न कहना गर्व न करना प्रपंच न करना अपस का न होना शांत भाव धारना पर उपकार करना परदारा परथन परद्रोह तजना पर पीड़ा का वचन न कहना बहु आरंभ बहु परिग्रह का त्याग करना दान देना तप करना परदुख हरण इत्यादि तो अनेक भेद पुण्य के हैं वे अंगीकार करने, .अहो प्राणी हो सुख दाता शुभ है और दुःखदाता अशुभ है दारिद्र दुःख रोग पीड़ा अपमान दुर्ग यह सब अशुभ के उदय से होय हैं और सुख संपत्ति सुगति यह सब शुभ के उदय से होय हैं । शुभ अशुभ ही सुखदुःखके कारण हैं और कोई देव दानव मानव सुख दुःखका दाता नहीं अपने २० पाजें कर्मकाफल सबभोगवे हैं सबजीवोंसे मित्रता करना किसीसे बैर न करना किसी को दुख न देना सबही सुखीहों यहभावना मनमें धरनी, प्रथम अशुभको तज शुभमें घावना फिर शुभाशुभसे रहितहोय शुद्धपदको प्राप्त होना बहुत कहिये कर क्या इसपुराणके श्रवणकर एकशुद्धसिद्ध पदमें यारुहोना अनेक भेदकर्मों का विलय करानन्दरूप रहना है । हो पंडितोहो परमपद के उपाय निश्चय थकी जिनशासन में कहे हैं वे अपनी शक्ति प्रमाण धारण करो जिसकर भवसागरसे पार होवो। यहशास्त्र अति मनोहर जीवों को शुद्धताका देनहारा रवि समान सकलवस्तुका प्रकाशक है सो सुनकर परमानंद स्वरूपमें मग्न होवो, संसारासार है जिनधर्म सार है। जिस कर सिद्धपदको पाईये है सिद्धपद समान और पदार्थ नहीं जब श्रीभगवान् त्रैलोक्य के सूर्य वर्द्धमान देवाधिदेव सिद्धलोक को सिधारे तच्चतुर्थकालके तीनवर्ष सादाद्याठ महीना शेष थे सोभगवान्को मुक्तिभए
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