Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म पुरा ग
१०७०
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पदका दूजा पुत्र मेवाथ सो कैवक महाउत्तम भव घर धर्मात्मा पुष्करद्वीप के महादेविह क्षेत्र में शतपत्र नामा नगरवहां पंचकल्याणक का धारक तोर्थकर देव चक्रवर्ती पद को घरे होयगा, संसारका त्यागकर केवल उपाय अनेकों को तारेगा और आप परमधाम पघारेगा, ये वासुदेव के भव तुझे कहे और में अब सात वर्ष में आयु पूर्ण कर लोक शिखर जाऊंगा जहां से फिर भव नहीं, और जहां अनंत तीर्थंकर गये और जायेंगे अनंत केवल वहां पहुंचे जहां ऋषभादि भरतादि विराजे हैं अविनाशीपुर त्रैलोक्य के शिखर है, जहां अनंतसिद्ध हैं वहां हा मैं तिलूंगा ये वचन सुन प्रत्येंद्र पदमनाम जे श्रीरामचन्द्र सर्वज्ञ वीतराग तिनको बार बार नमस्कार करता भया और मध्यलोक के सर्वतीर्थवंदे भगवान के कृत्रिम कृत्रिम चैत्यालय, और निर्वाणक्षेत्र वहां सर्वत्र पूजा कर और नंदीश्वरद्वीप विषेयंजनगिरि दधि मुख रतिकर वहां बड़े विधान से • अटानिका की पूजा करी देवाधिदेव जे अरहत सिद्ध तिनकाध्यान करता भया, और केवली के वचन सुन पैसा निश्चय भया जो मैं केवलो होय चुका अल्प भव हैं और भाई के स्नेह से भोग भूमि में जहां भामंडल का जीव है वहां जाय उसे देखा और उसको कल्याण का उपदेश दीया और फिर अपना स्थान सोलवां स्वर्ग वहां गया जिसके हजारोंदेवारानो तिनसहित मानसिक भोग भोगतोभया श्री रामचन्द्र का सतरह हजार वर्ष की आयु सोलह धनुष की ऊंची काया कैयक जन्म के पापों से रहित होय सिद्ध भये व प्रभु भव्यजीवों को कल्याण करो जन्म जरा मरण महारिपु जीते परमात्मा भये जिनशासन में प्रकट है महिमा जिनकी जन्मजरा मरणका विछेदकर अखंड अविनाशी परम अतीन्द्रिय सुख पाया सुर असुर मुनिवर तिनंके जे अधिपति तिनकर सेय व योग्य नमस्कार करवे योग्य दोषों के विनाशक पच्चास वर्षं तपकर
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