Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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जैनका यति चला आवे है ऐसा कौनका भाग्य जिसके घर यह पुण्याधिकारी श्राहार करे कौन के पवित्र करे उसके बड़े भाग्य जिसके घर यह आहार लेय यह इन्द्रसमान रघुकुलका तिलक अनोभ पराक्रमी शीलका पहाड़ गमचन्द्र पुरुषोत्तम है इसके दर्शनकर नेत्र सफलहोय मन निर्मल होय जन्म सफलहोय देही पाये का यह फल जो चारित्र पालिये इसभांति नगरके लोक रामके दर्शन कर श्राश्चर्यको प्राप्त भये नगरमें रमणीक ध्वनि भई श्रीराम नगरमें पैठे और समस्त गली और मार्ग ना पुरुषों के समूह कर भर गया नर नारी नाना प्रकार के भोजन, घरमें जिनके प्रकाश जलकी झारी भरे बारे पेखन करे हैं निर्मल जल दिखावते पवित्र धोवती पहिरे नमस्कार करे हैं । हे स्वामी अन्न सिष्ठ अन्न जल शुद्ध इसभांति के शब्द करे हैं नाही समावे है हृदयमें हर्ष जिनके हे मुनींद्र जयवन्त होवो हे पुण्यके पहार नादो विरदो इन बचनोंकरदशोंदिशा प्ररित भई घरघरमें लोग परस्पर बात करें हैं स्वर्णके भाजनमें दुग्ध दधि घृत ईषरसदाल भात तीर शीघ्रही तयारकर राखो मिश्री मोदक कपूरकर युक्त शीतल जल सुन्दर पूरी शिखिरणी भली भांति विधि से राखो या भांति नर नारियोंके बचनालाप तिनकर समस्त नगर शब्दरूप होय गया महासंभूमके भरे जनअपने बालकोंको न विलोकतंभए मार्ग | में लोक दोडे सो काहूके धके से कोई गिर पडे इसभांति लोकनके कोलाहलकर हाथी खूटा उपाडते भये और गांममें दौडते भए तिनके कपोलों से मद झरिबे कर मार्गमें जलका प्रवाह होयगया हाथियों के भय से घोड़े घास तज तज बन्धन तुडाय तुडोय भाजे और हींसतेभए सो हाथी घोड़ों की घमसाणकर लोक || व्याकुल भए तव दान विषे तत्पर राजा कोलाहल शब्द सुन मन्दिर के ऊपर बाय खडा रहा दूरसे मुनि
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