Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay

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Page 1062
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra पद्म घराण १९०५२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुमेरु की प्रदक्षिणा करें तैसे मुनिन्द्र की प्रदक्षिणा करते भये उपजा हैमहाज्ञान । जनका वराग्यरूपवस्त्र पहिरे बांधी हे कर्मों के नाशको कमर जिन्होंने शारूपपाश तड़ स्नेह का पींजरा दग्घकर स्त्रीरूप बंधनसेबूटोमोह का मान मार हार कुंडल मुकट केयर कटिमेखलादि सर्व ग्राभषण द्वार तत्काल वस्त्र तजे, परम सत्वे विषे लगा है मन जिनका वस्त्राभरण यूं तजे ज्यों शरीर तजिए महासुकुमार अपने कर तिन कर केश लोंच किए पदमासन घर विराजे शील के मंदिर अष्टम बलभद्र समस्त परिग्रह को तेज कर ऐसे सोइते भए जैसा- राहु से रहित सूर्य सोई पंचमहाव्रत आदरे पंचसुमति अंगीकार कर तीन गुप्ति रूप मढ़ में विराजे मनोदंड वचनदंड काय दंड के दूर करणहारे पट कार्य के मित्र, सप्त भय रहित आठ कर्मों के रिपु, नवधा ब्रह्मचर्य के धारक, दश लक्षण धर्म धारक श्रीवत्स लक्षण कर शोभित है उरस्थल जिनका गुणभषण सकलदूषण रहित तत्वज्ञान विषे दृढ़ रामचन्द्र महामुनि भए तब देवों ने पंचाश्चर्य किए सुन्दर दुन्दभी बाजे और दोनों देव कृतांतवक्काजीव एक जटायकाजीव तिन्होंने परम उत्साह किए जब पृथिवी का पति राम पृथिवी को तज निकसा तब भमिगोचरी विद्याधर सब ही राजा याश्चर्य को प्राप्त भये और विचारते भए जो ऐसी विभूति ऐसे रत्न यह प्रताप तज कर रामदेव मुनि भए तो और हमारे कहां परिग्रह जिसके लाभ घर में तिष्ठे व्रत बिना हम एते दिन यहीं खोए ऐसा विचार कर अनेक राजगृह बन्धन से किसे और राग मई पाशी काट द्वेष रूप बैरी को विनाश सर्व परिग्रह का त्याग कर भाई न मुनि भए और विभीषण सुग्रीव नील नल चन्द्रनख विराधित इत्यादि अनेक राजा मुनि भए विद्याधर सर्व विद्या का त्याग कर ब्रह्मविद्या का प्राप्त भए कयकों को चारणऋद्धि उपजी इस भांति For Private and Personal Use Only

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