Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पन | चेष्टा करे सो क्षणएक देख कर श्रावगे शोक कर लक्ष्मण का कैसा मुख होजाय कौन से कोप करे व्या २०३२॥ कहे ऐसी धारणा कर दोनों दुराचारी देव अयोध्या आए सो राम के महिल में विक्रिया कर समस्त
अन्तहपुर की स्त्रियों का रुदन शब्द कराया और ऐसी विक्रिया करी द्वारपाल उमराव मंत्री पुरोहित आदि नीचामुख कर लक्षमणपै अाए और रामका मरणकहते भए, कि हेनाथ रामपरलोक पधारे ऐसेवचनसुनकर लक्षमणने मन्दपवन करचपल जो नील कमल उस समानसुन्दर हैं नेत्र जिसके सो हायहायशब्दको बाधा सा कह तत्काल ही प्राण तजे, सिंहासन ऊपर बैठा था सो वचन रूप वज्रपात का मारा जीव रहित । होय मया आंख की पलक ज्यों थी त्यों ही रहगई जीव जाता रहा शरीर अचेतन रह गया लक्षमण को।
भ्राता की मिथ्या मृत्यु रूप वचन रूप अग्नि कर जरा देख दोनों देव व्याकुल भए लक्षमण के जिवायचे | को असमर्थ तब विचारी इसकी मृत्यु इसही विधि कही थो मन में अति परताए विषाद और आश्चर्य के ।
भरे अपने स्थानक गए शोक रूप अग्नि कर तप्तायमान है चित्त जिनका लक्ष्मण की वह मनोहर मति ।
मृतक भई देव देख नसके वहां खड़े न रहे निन्द्य है उद्यमजिनका । गौतमस्वामी राजा श्रेणिक से कहे ।। हैं हे राजन बिना विचारे जे पापी कार्य करेंतिनको पश्चात्ताप ही होय देवता गए और लक्षमण की स्त्री । पति को अचेतन रूप देख प्रसन्न करने कोउद्यमी भई कहे है हे नाथ किस अविवेकिनी सौभाग्य के गर्व कर गर्वित ने आप का मान न किया सोउचित न करी हे देव आप प्रसन्न होवो तुम्हारी अप्रसन्नता
हमको दुखकाकारण है ऐसा कह कर वे परम प्रेम की भरी लक्षमण के अंग से प्रालिंन कर पायन पड़ी। ! वे राणीचतुराई के वचन कहि वे विषे तत्पर कोई यक तो बीण लेय बजावती भई कोई मृदंग बजावती
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