Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
पद्म
परा १०४=
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
को मूद्र देख हमारे अधिक प्रीति उपजी है हम वृथा कार्य के करणहारे तिनमें तुम मुख्य हो हम उन्मत्ता की ध्वजा लिये फिरे हैं, सो तुमको अतिउन्मत्तदेख तुम्हारे निकट आए हैं इस भांति उन दोनों मित्रोंके वचन राम मोहरहित भया शास्त्रों के वचन चितार सचेत भए, जैसे सूर्य मेघ पटल से निकस अपनी किरण कर देदीप्यमान भासे तैसे भरतक्षेत्र का पति राम सोई भया भानु सो मोहरूप मेघपटल से निकस ज्ञानरूप किरणोंकर भासता भया, जैसे शरदऋतु में कारी घटा से रहित आकाश निर्मल सोहे तैसे रामका मन शोकरूप कर्दम से रहित निर्मल भासता भया राम समस्त शास्त्रों में प्रवाण अमृत समान जिनवचन चितार खेदरहित भए, घोरता को अबलंबनकर ऐसे सोहे जैसा भगवान्का जन्माभिषेक में सुमेरु सोहं जैसे महा दाहे की शीतल पवन के स्पर्श से रहित कमलों का बन सोहे और फूले तैसे शोकरूप कलुषता रहित राम का चित्त विगसता भया जैसे कोई रात्री के अंधकार में मार्ग भूल गया था और सूर्य के उदय भए मार्ग पाय प्रसन्न हो और महाक्षधाकर पीड़ित मनवांछित भोजन खाय अत्यंत श्रानन्द को प्राप्त होय और जैसे कोई समुद्र के तिरित्रेका अभिलाषी जहाज की पाय हर्षरूप होय, और बनमें मार्ग भूला नगर का मार्ग पाये खुशी होय और तृषा कर पीडित महा सरोवरको पाय सुखी होय, रोग कर पीडित राग हरण औषध hatta नन्द को पावे, और अपने देश गयो चाहे और साथी देख प्रसन्न होय और बंदीगृह से छुटा चाहे और बेड़ी कटे जैसे हर्षित होय तैसे रामचन्द्र प्रतिबोधको पाय प्रसन्न भए प्रफुल्लित भया 'है हृदय कमल जिनका परम कांति को धारते याप को संसार अंधकूप से निक्सा मानते भए मन में
मैं नवा जन्म पाया श्रीराम विचारे हैं अहो डाभकीय णीपर पड़ी योसकी बूंद उससमानचंचल मनुष्य
For Private and Personal Use Only