Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पद्म
के मृतक शरीर को लिये फिरे है ऐसा मोह कौन को होय यद्यपि राम समान योधा पृथ्वी में श्रीर १०४५ || नहीं वह हल मूशलका घरणहारा अद्वितीय मल्ल है तथापि भाईके शोकरूप कीच में फंसा निकसबे
पुराणा
समर्थ नहीं सो अब राम से बैर भाव लेनेका दाव है जिसके भाईने हमारे बंशके बहुत मारे शंबूक के भाई के पुत्र ने इन्द्रजीत के बेटे को यह कहा सो कोधकर प्रज्वलित भया मंत्रियों को श्राज्ञा देय रणभेरी दिवाय सेना भली कर शम्बूकके भाईके पुत्र सहित अयोध्या की ओर चला सेना रूप समुद्र को लिये प्रथम तो सुग्रीव पर कोप किया कि सुग्रीवको मार अथवा पकड उसका देश खोस लें फिर राम से लड़ें यह विचार इन्द्रजीत के पुत्र बज्रमाली ने किया सुन्दर के पुत्र सहित चढा तब ये समाचार सुनकर सर्व विद्यावर जे रामके सेवक थे वे रामचन्द्र के निकट अयोध्या में चाय भेले भये जैसा भीड़ अयोध्या में लवकुश के व्यायवे के दिन भई थी तैसी भई, वैरियों की सेना अयोध्या ..के समीप ाई सुनकर रामचन्द्र लक्ष्मण को कांधे लिये ही धनुप् बाथ हाथ में समारे विद्याधरों को संग ले आप बाहिर निकसे उस समय कृतांतवक का जीव और जटायु पक्षी का जोव चौथे स्वर्ग देव भये थे तिनके आसन कंपायमान भये, कृतांतवक का जीव स्वामी और जटायु पक्षी का जाव सेवक सो कुक का जीव जटायु के जीव से कहता भया हे मित्र आज तुम कोवरूप क्यों भये हो तब वह कहता या जब मैं गृध पक्षी था सो राम ने मुझे प्यारे पुत्र कीन्याइँ पाता और जिन धर्म का उपदेश दोया मरण समय नमोकार मंत्र दीया उस कर में देव भया अब वह तो भाई के शोक कर तप्तायमान है और शत्रु की सेना उसपर छाई है तब कृतांतवक का जीव जो देव था उसने अवधि जोड़कर कही है
For Private and Personal Use Only