Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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| महा तपकर अशुभ कर्म का क्षयकरे हैं विजुरी वमके हैं मेघकर अंधकार होयरहा है मयूर बोले हैं ढाहा पगण | उपाड़ती महाशद करती नदी बहे हैं उसऋतु में दोनों भाई सुमेरु के शिखर समान ऊंचे नाना मणिमई
जे महिल तिन में महाश्रेष्ठ रंगीले वस्त्र पहिरे केसरके रंगकर लिप्त है अंग जिनका और कृष्णगरुका धूप स्खेय रहे हैं महासुन्दर स्त्रियों के नेत्र रूप भ्रमरों के कमल सारिखे इन्द्र समान क्रीडा करते सुख से तिष्ठे और शरद ऋतु में जल निर्मल होय चन्द्रमा की किरण उज्ज्वल होय कमल फूले हंस मनोहर शब्द करों मुनिराज वन पर्वत सरोवर नदीके तीर बैठेचिद्रूपका ध्यानकरें उसऋतु में रामलक्ष्मण राज लोकों सहित लांदनी के वस्त्र प्राभरण पहिरे सरिता सरोवर के तीर नानाविधि क्रीडा करते भए और शीत ऋतु में योगीश्वर धर्मध्यान को ध्यावते रात्रि में नदी तालावों के तट में जहां अति शीत पड़े वर्फ पासे मह्म ठण्डी पवन बाजे वहां निश्चल मिठे हैं महा प्रचंड शीतल पवन कर वृक्ष दाहे मारे हैं !! और सूर्य का तेज मन्द होयगया है ऐसी ऋतुमें राम लक्ष्मण महिलों के भीतरले चौबारों में तिष्ठते
मनवांछित विलास करते सुन्दर स्त्रियों के समूह सहित वीण मृदंग वासुरी आदि अनेक वादित्रोंके शब्द कानों को अमृत समान श्रवण कर मनको पाल्हाद उपजावते दोनों वीर महा धीर देवों समान और जिनके स्त्री देवांगना समान वाणी कर जीती हैवीण की ध्वनि जिन्होंने महापतित्रता तिनकर आदरते पुण्य प्रभावसे मुखसे शीतकाल व्यतीत करते भये अद्भुत भोगोंकी संपदाकर मंहित वे पुरुषोत्तम प्रजा को अानन्दकारी दोनों भाई सुख से तिष्ठे हैं। • अथानन्तर गौतमस्वामी कहें हैं हे श्रेणिक अव तु हनूमानका वृतान्त सुन हनूमान पवनका पुत्र |
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