Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पागा
०८
पम धर राजकुमार आये थे सो यथा योग्य तिष्टे जैसे इन्द्रकीसभामें नानाप्रकारके श्राभूषण पहिरे देवतिष्ठं और ।
नन्दनबन में देव नानाप्रकारकी चेष्टा करें तैसे चेष्टा करते थे और वे दोनो कन्या मन्दाकिनी और चन्द्रवका मंगलस्नानकर सर्वश्राभूषण पहिरे निजबास से रथ चढ़ी निकसी मानों साक्षात लक्ष्मी और लजाही हैं महागुणोंकर पूर्ण तिनके खोजा लार था सोराजकुमारोंके देश कुल संपति गुणनाम चेष्टा सब कहता भया । और कही ये आए हैं तिनमें कई बानरध्वज कई सिंहध्वज कई वृषभध्वज कई गजध्वज इत्यादि अनेक भांति की ध्वजा को धरे महा पराक्रमी हैं इन में इच्छा होय सो वरी तबवह सबोंको देखती भई और यह सब राजकुमार उनको देख संदेहकी तुला में प्रारूढ़ भये कि यहरूप गर्बित हैं न जानिये कौनको बरें ऐसी रूपवन्ती हम देखी नहीं मानो ये दोनों समस्त देवीयों का रूप एक कर बनाई हैं यह कामकी पताका लोकों को उन्मादका कारण इस भांति सब राजकुमार अपने २ मन में अभिलाषा रूप भए दोनों उन्मत्तकन्या लवअंकुश को देख कामबाण कर बेधी गई उनमें मन्दाकिनीनामा जो कन्या उस ने लवके कंठमें बरमाला डारा, और दूजी कन्या चन्द्रवका ने अंकुश के कण्ठ में वरमाला डारी तब समस्त राजकुमारों के मनरूप पक्षी तनुरूप पीजरें से उड़ गये और जे उत्तम जन थेतिन्होंने प्रशंसाकरी कि इन दोनों कन्यावों ने रामके दोनों पुत्रबरे सो नीके करी ये कन्या इनही योग्य हैं इस भांति सज्जनों के मुख से बाणी निकसी जे भले पुरुष हैं तिनका चित्त योगसम्बन्ध से आन्द को प्राप्त होय ॥
अथानन्तर लक्षमणकी विशल्या अादि आठ पटरानी तिनके पुत्र पाठ महा सुन्दर उदार चित्त शूरवीर | पृथिवी विषेप्रसिद्ध इन्द्रसमान सो अपने अढाईसे भाइयों सहित महाप्रीति युक्त तिष्ठते थे जैसे तारावों
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