Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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परा, सचेत होय महादाहका भरा मारने को उद्यमीभया तब श्रीरामने स्थसे उतर हाथ पकड़कर उरसे लगाया
धीर्य बंधाया फिर मूर्छा खाय पड़ा अवेत होय गया श्रीरामने सचेत किया तब सचेतहोय विलाप करता भया । जिसका विलाप सुने करुणा उपजे, हाय भाई उदार क्रियावन्त सामंतोंके पति महाशूरबीर रण धीर शरणागत पालक महामनोहर ऐसी अवस्थाको क्यों प्राप्तभए मैं हितके बचन कहे सो क्यों न माने यह क्या अवस्थाभई जो मैं तुमको चक्र के विदारे पृथिवी विषे परे देखू हूं देव विद्याधरोंके महे श्वर हे लंकेश्वर भोगोंके भोक्ता पृथ्वी में कहा पौढे महा भोगोंकर लडायाहै शरीर जिनका यह सेज आपके शयन करने योग्य नहीं, हे नाथ उठो सुन्दर बचनके वक्ता मैं तुम्हारा बालक मुझे कृपाके बचन कहो, हे गुणाकर कृपाधार में शोक के समुद्र विषे डूबू हूं सो मुझे हस्तालंबन कर क्यों न निकालो इस भांति विभीषण विलाप करे है डार दिये हैं शस्त्र और बक्तर भूमि में जिसने ॥
अथानन्तर रावणके मरणके समाचार रणावासमें पहुंचे सोराणियां सर्व अश्रुपातकी धाराकर पृथ्वी तल को सींचती भई और सर्वही अन्तःपुर शोककर व्याकुल भया सकल राणी रण भूमिमें आई गिरती पड़ती गिरती परती ढिगेहैं चरण जिनके वे नारी पतिको चेतनारहित देख शीघही पृथिवीविषे पडी कैसा है पति पृथ्वी की चूड़ामणिहै मन्दोदरी, रंभा, चन्द्रानना, चन्द्रमंडला,प्रवरा, उर्वशी महा देवी, सुंदरी कमलानना, रूपिणी, रुक्मणा, शीला, रत्नमाला,तनूदरी, श्रीकांता, श्रीमती, भद्रा, कनक, प्रभा, मृग वती,श्रीमालामानवी, लक्ष्मी, अनन्दा,अनंगसुन्दर्ग,बसुन्धरा,तडिन्माला,पद्मापद्मावती,सुखादेवी,कांति प्रीति, संध्यावली,सुभा, प्रभावती,मनोवेगा, रतिकांता, मनोवती, इत्यादि अष्टादशसहस्र राणी अपने २ ।
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